गाय बकरा
हे ,मनुज अब नही सर्वधर्मसमभाव,
देश बँट गया हूँ गाय- बकरे में -आज !
हे ,मनुज क्यू डाल रहा है गर्हित बंधन,
धर्म,किताबो की आड मे ढकोस-आज !
हे,मनुज करता कत्ले आम बहाता आग,
दरिया जलाता छप्पर छाजन सब-आज!
हे,मनुज बुहार दे काँटे एक दूजे की राह,
के न बन गधो,कुक्रो सा दीन हीन-आज!
हे,मनुज छोड़ द्वेषभाव अपनीअर्थी खुद,
ना बन गूंगे पशुओ पे दया खाओ-आज!
हे,मनुज तुम नही राम-रहमान की झूठी ओलादे
एकत्र भाव जग को दिखाओ- आज !
हे, मनुज नही तुम भगवा या ओवीसी ना
वोट बैंक ठोकर इस नीति को मारो -आज !