कविता

गाय बकरा

हे ,मनुज अब नही सर्वधर्मसमभाव,

देश बँट गया हूँ गाय- बकरे में -आज !

हे ,मनुज क्यू डाल रहा है गर्हित बंधन,

धर्म,किताबो की आड मे ढकोस-आज !

हे,मनुज करता कत्ले आम बहाता आग,

दरिया जलाता छप्पर छाजन सब-आज!

हे,मनुज बुहार दे काँटे एक दूजे की राह,

के न बन गधो,कुक्रो सा दीन हीन-आज!

हे,मनुज छोड़ द्वेषभाव अपनीअर्थी खुद,

ना बन गूंगे पशुओ पे दया खाओ-आज!

हे,मनुज तुम नही राम-रहमान की झूठी ओलादे

एकत्र भाव जग को दिखाओ- आज !

हे, मनुज नही तुम भगवा या ओवीसी ना

वोट बैंक ठोकर इस नीति को मारो -आज !

गीता यादव

, निवासी दिल्ली