राजनीति

गौमांस खाने के समर्थन में दिए जा रहे कुतर्कों की समीक्षा  

दादरी ग्रेटर नोएडा के गांव में हुई घटना निस्संदेह रूप से निंदाजनक है। अगर गोहत्या हुई थी तो उसे प्रशासन द्वारा गोहत्या, धार्मिक सौहार्द एवं हिन्दुओं की भावनाओं को भड़काने के आरोप में कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए थी। यह घटना एक और तथ्य को सिद्ध करती है। जिस प्रकार से 1857 की प्रथम क्रान्ति गौहत्या के संवेदनशील मुद्दे से जुड़ी थी, उसी प्रकार से आज भी जुड़ी हैं। मगर इस देश का एक विशेष वर्ग हिन्दू समाज की इस भावना को न समझकर उलटे सीधे कुतर्क देकर उन्हें गलत सिद्ध करने का असफल प्रयास कर रहा हैं। एक अश्लील उपन्यास बेच कर पेट भरने वाली लेखिका शोभा डे हिन्दुओं को यह चुनौती दे रही है कि आज मैंने गौमांस खाया है। आओ मुझे मार कर दिखाओ। उन मोहतरमा ने यह नहीं पहचाना की हिन्दू समाज स्वाभाव से सहिष्णु है। इसीलिए उनका धंधा पानी यहाँ पर चल रहा है। अगर उनमें हिम्मत है तो मुहम्मद साहिब का कार्टून बना कर दिखाए। इसी देश के मुसलमान ISIS के समान चौराहे पर खड़ा करके सरेआम फाँसी लगाकर आपकी सेकुलरता को सिद्ध कर देंगे। कुक्कुरमुत्तों के समान गौमांस भक्षण के समर्थन में अनेक लेख अंग्रेजी मीडिया में प्रकाशित हो रहे हैं। जो अपने कुतर्कों से यह सिद्ध करना चाहते हैं की गौमांस खाना गलत नहीं हैं। इस लेख के माध्यम से हम तर्कपूर्वक इन कुतर्कों की समीक्षा करेंगे।
कुतर्क न. 1 गौमांस प्राचीन काल से खाया जाता है। हमारे धार्मिक ग्रन्थ इसका समर्थन करते हैं।
समीक्षा- वेदों में मांस भक्षण का स्पष्ट निषेध किया गया हैं। अनेक वेद मन्त्रों में स्पष्ट रूप से किसी भी प्राणि को मारकर खाने का स्पष्ट निषेध किया गया हैं। जैसे
हे मनुष्यों ! जो गौ आदि पशु हैं वे कभी भी हिंसा करने योग्य नहीं हैं – यजुर्वेद 1/1
जो लोग परमात्मा के सहचरी प्राणी मात्र को अपनी आत्मा का तुल्य जानते हैं अर्थात जैसे अपना हित चाहते हैं वैसे ही अन्यों में भी व्रतते हैं-यजुर्वेद 40/7
हे दांतों तुम चावल खाओ, जौ खाओ, उड़द खाओ और तिल खाओ। तुम्हारे लिए यही रमणीय भोज्य पदार्थों का भाग हैं । तुम किसी भी नर और मादा की कभी हिंसा मत करो।- अथर्ववेद 6/140/2
वह लोग जो नर और मादा, भ्रूण और अंड़ों के नाश से उपलब्ध हुए मांस को कच्चा या पकाकर खातें हैं, हमें उनका विरोध करना चाहिए- अथर्ववेद 8/6/23
निर्दोषों को मारना निश्चित ही महापाप है, हमारे गाय, घोड़े और पुरुषों को मत मार। -अथर्ववेद 10/1/29
इस प्रकार से अनेक प्रमाण वेदों में मांसाहार के विरुद्ध मिलते हैं। कुछ लोग जो प्रमाण मांसाहार विशेष रूप से गौमांस के समर्थन में देते हैं, वे वेदों के मन्त्रों की गलत व्याख्या निकालने के कारण हैं।
कुतर्क नं  2. गौ मांस गरीबों का प्रोटीन हैं। प्रतिबन्ध से उनके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव होगा।
समीक्षा- एक किलो गौ मांस 150 से 200 रुपये में मिलता हैं जबकि इतने रुपये में 2 किलो दाल मिलती हैं। एक किलो गौमांस से केवल 4 व्यक्ति एक समय का भोजन कर सकते हैं जबकि 2 किलो दाल में कम से कम 16-20 आदमी एक साथ भोजन कर सकते हैं। मांस से मिलने वाले प्रोटीन से पेट के कैंसर से लेकर अनेक बीमारियां होने का खतरा हैं जबकि शाकाहारी भोजन प्राकृतिक होने के कारण स्वास्थ्य के अनुकूल हैं।
कुतर्क नं  3. गौ मांस पर प्रतिबन्ध अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हैं क्यूंकि यह उनके भोजन का प्रमुख भाग है।
समीक्षा- मनुष्य स्वाभाव से मांसाहारी नहीं अपितु शाकाहारी हैं। वह मांस से अधिक गौ का दूध ग्रहण करता है। इसलिए यह कहना की गौ का मांस भोजन का प्रमुख भाग हैं एक कुतर्क है। एक गौ अपने जीवन में दूध द्वारा हज़ारों मनुष्यों की सेवा करती हैं जबकि मनुष्य इतना बड़ा कृतघ्नी हैं की उसे सम्मान देने के स्थान पर कसाइयों से कटवा डालता है।
कुतर्क नं  4. अगर गौ मांस पर प्रतिबन्ध लगाया गया तो बूढ़ी एवं दूध न देनी वाली गौ जमीन पर उगने वाली सारी घास को खा जाएगी जिससे लोगों को घास भी नसीब न होगी।
समीक्षा- गौ घास खाने के साथ साथ गोबर के रूप में प्राकृतिक खाद भी देती हैं जिससे जमीन की न केवल उर्वरा शक्ति बढ़ती हैं अपितु प्राकृतिक होने के कारण उसका कोई दुष्परिणाम नहीं है। प्राकृतिक गोबर की खाद डालने से न केवल धन बचता हैं अपितु उससे जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती हैं। साथ में ऐसी फसलों में कीड़ा भी कम लगता हैं जिनमें प्राकृतिक खाद का प्रयोग होता है। इस कारण से महंगे कीटनाशकों की भी बचत होती हैं। साथ में विदेश से महंगी रासनायिक खाद का आयात भी नहीं करना पड़ता। बूढ़ी एवं दूध न देनी वाली गौ को प्राकृतिक खाद के स्रोत्र के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
कुतर्क नं  5. गौहत्या पर प्रतिबन्ध अल्पसंख्यकों के अधिकारों का अतिक्रमण है।
समीक्षा- बहुसंख्यक के अधिकारों का भी कभी ख्याल रखा जाना चाहिए। इस देश में बहुसंख्यक भी रहते है। गौहत्यापर प्रतिबन्ध से अगर बहुसंख्यक समाज प्रसन्न होता हैं तो उसमें बुराई क्या है।
कुतर्क नं  6. गौहत्या करने वाले को 10 वर्ष की सजा का प्रावधान हैं जबकि बलात्कारी को 7 वर्ष का दंड है। क्या गौ एक नारी के शील से अधिक महत्वपूर्ण हो गई?
समाधान- हम तो बलात्कारी को उम्रकैद से लेकर फांसी की सजा देने की बात करते है। आप लोग ही कटोरा लेकर उनके लिए मानव अधिकार के नाम पर माँफी देने की बात करते है। सबसे अधिक मानव अधिकार के नाम पर रोना एवं फांसी पर प्रतिबन्ध की मांग आप सेक्युलर लोगों का सबसे बड़ा ड्रामा है।
कुतर्क नं  7. गौहत्या के व्यापर में हिन्दू भी शामिल है।
समाधान- गौहत्या करने वाला हत्यारा है। वह हिन्दू या मुसलमान नहीं है। पैसो के लालच में अपनी माँ को जो मार डाले वह हत्यारा या कातिल कहलाता हैं नाकि हिन्दू या मुस्लमान। सबसे अधिक गोमांस का निर्यात मुस्लिम देशों को होता हैं। इससे हमारे देश के बच्चे तो दूध के लिए तरस जाते हैं और हमारे यहाँ का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता हैं।
कुतर्क नं  8.  अगर गौ से इतना ही प्रेम है तो उसे सड़कों पर क्यों छोड़ देते है।
समाधान- प्राचीन काल में राजा लोग गौ को संरक्षण देने के लिए गौशाला आदि का प्रबंध करते थे जबकि आज की सरकारे सहयोग के स्थान पर गौ मांस के निर्यात पर सब्सिडी देती है। विडंबना देखिये मुर्दों के लिए बड़े बड़े कब्रिस्तान बनाने एवं उनकी चारदीवारी करने के लिए सरकार अनुदान देती हैं जबकि जीवित गौ के लिए गौचर भूमि एवं चारा तक उपलब्ध नहीं करवाती। अगर हर शहर के समीप गौचर की भूमि एवं चारा उपलब्ध करवाया जाये तो कोई भी गौ सड़कों पर न घूमे। खेद हैं हमारे देश में अल्पसंख्यकों को लुभाने के चक्कर में मुर्दों की गौ माता से ज्यादा औकाद बना दी गई है।
कुतर्क नं  9. गौ पालन से ग्रीन हाउस गैस निकलती है जिससे पर्यावरण की हानि होती हैं।
समाधान- यह वैज्ञानिक तथ्य हैं की मांस भक्षण के लिए लाखों लीटर पानी बर्बाद होता हैं जिससे पर्यावरण की हानि होती है। साथ में पशुओं को मांस के लिए मोटा करने के चक्कर में बड़ी मात्र में तिलहन खिलाया जाता हैं जिससे खाद्य पदार्थों को अनुचित दोहन होता है। शाकाहार पर्यावरण के अनुकूल हैं और मांसाहार पर्यावरण के प्रतिकूल हैं। कभी पर्यावरण वैज्ञानिकों का कथन भी पढ़ लिया करो।
कुतर्क नं  10. गौमांस पर प्रतिबन्ध भोजन की स्वतंत्रता पर आघात हैं।
समाधान- मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्रता हैं मगर सामाजिक नियम का पालन करने के लिए परतंत्र है। एक उदहारण लीजिये आप सड़क पर जब कार चलाते हैं तब आप यातायात के सभी नियमों का पालन करते हैं अन्यथा दुर्घटना हो जाएगी। आप कभी कार को उलटी दिशा में नहीं चलाते और न ही कहीं पर भी रोक देते हैं अन्यथा यातायात रुक जायेगा। यह नियम पालन मनुष्य की स्वतंत्रता पर आघात नहीं हैं अपितु समाज के कल्याण का मार्ग है। इसी नियम से भोजन की स्वतंत्रता का अर्थ दूसरे व्यक्ति की मान्यताओं को समुचित सम्मान देते हुए भोजन ग्रहण करना है। जिस कार्य से समाज में दूरियां, मनमुटाव, तनाव आदि पैदा हो उस कार्य को समाज हित में न करना चाहिये।
कुतर्क नं  11. महाराष्ट्र में गौ हत्या पर पाबन्दी लगा दी गई। इससे 1.5 लाख व्यक्ति बेरोजगार हो जायेगे जो मांस व्यापर से जुड़े है।
समीक्षा- गौ पालन भी अच्छा व्यवसाय हैं। इससे न केवल गौ का रक्षण होगा अपितु पीने के लिए जनता को लाभकारी दूध भी मिलेगा। ये व्यक्ति गौ पालन को अपना व्यवसाय बना सकते हैं। इससे न केवल धार्मिक सौहार्द बढ़ेगा अपितु सभी का कल्याण होगा।
इन कुतर्कों का मुख्य उद्देश्य युवा मस्तिष्कों को भ्रमित करना है। इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करके अपने मित्रों को बचाये।
— डॉ विवेक आर्य

4 thoughts on “गौमांस खाने के समर्थन में दिए जा रहे कुतर्कों की समीक्षा  

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत बलपूर्वक आपने गोहत्यारों के कुतर्कों का उत्तर दिया है। बधाई। जब तक गौहत्यारों को मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा तब तक वे नहीं मानेंगे।

    • उत्साह वर्धन हेतु धन्यवाद संपादक जी

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन

    • उत्साह वर्धन हेतु धन्यवाद जी

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