दोहे
माया महिमा साधुता, उगी ठगी चहुं ओर
जातन देखि विलासिता, भीड़ भई मतिभोर ||
उटपटांग भाषा भविष्य, बोलत बैन बलाय
हर्ष धरे मन शूरमा, फिर पाछे पछिताय ||
पाप पुण्य की आस में, जीवन बीता जाय
नहीं भक्ति ना कर्म भा, दिन मह रात दिखाय ||
भली भलाई पारकी, मन संतोष समाय
खुद की थाली कब कहे, रख ले दूसर खाय ||
जल जीवन का, जल बिना, प्राण धरा रहि जाय
जहर पिए नहीं को बचें, जल जनि जहर मिलाय ||
— महातम मिश्र
अच्छे दोहे, लेकिन कई जगह अर्थ स्पष्ट नहीं है!
सादर धन्यवाद आदरणीय श्री विजय कुमार सिंघल जी, आप का आशीष बहुत दिनों बाद पाकर धन्य हुआ आदरणीय…….स्नेह वंचित न रहूँ सर……पत्रिका में रचना को स्थान दिया आप ने यह मेरा सौभाग्य है श्रीमन……सुधार करूँगा सर
सुंदर भाव सुंदर रचना के लिए सादर नमन् जय माँ शारदे
दोहा=
पहले -तीसरे चरण में १३ मात्राएँ ,[6+4+1+2,/,3+3+4+1+2]
दूसरे–चौथे चरण में ११ मात्राएँ[6+4+1//3+3+2+2+1]
प्रथम आप का आशीष मिला यह मेरा सौभाग्य है आदरणीय श्री राजकिशोर मिश्र जी, द्वितीय आप का सुझाव पाकर प्रेरणा मिली, आभार सर……जय माँ शारदे……
सुन्दर दोहे श्रीमान जी।
सादर धन्यवाद मित्र रमेश कुमार सिंह जी, बहुत दिनों बाद आप की उपस्थिति से मन खुश हों गया महोदय
दोहे अछे लगे .
सादर धनयवाद आदरणीय ब्रम्हा जी, आभार सर आप को दोहों ने मुग्ध किया
सुंदर रचना
सादर धन्यवाद आदरणीया सुश्री विभारानी श्रीवास्तव जी, आप को दोहे सुन्दर लगे मेरी लेखनी को बल मिला आदरणीया, आभार