मुक्तक/दोहा

दोहे

माया महिमा साधुता, उगी ठगी चहुं ओर
जातन देखि विलासिता, भीड़ भई मतिभोर ||

उटपटांग भाषा भविष्य, बोलत बैन बलाय
हर्ष धरे मन शूरमा, फिर पाछे पछिताय ||

पाप पुण्य की आस में, जीवन बीता जाय
नहीं भक्ति ना कर्म भा, दिन मह रात दिखाय ||

भली भलाई पारकी, मन संतोष समाय
खुद की थाली कब कहे, रख ले दूसर खाय ||

जल जीवन का, जल बिना, प्राण धरा रहि जाय
जहर पिए नहीं को बचें, जल जनि जहर मिलाय ||

— महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

10 thoughts on “दोहे

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे दोहे, लेकिन कई जगह अर्थ स्पष्ट नहीं है!

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय श्री विजय कुमार सिंघल जी, आप का आशीष बहुत दिनों बाद पाकर धन्य हुआ आदरणीय…….स्नेह वंचित न रहूँ सर……पत्रिका में रचना को स्थान दिया आप ने यह मेरा सौभाग्य है श्रीमन……सुधार करूँगा सर

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    सुंदर भाव सुंदर रचना के लिए सादर नमन् जय माँ शारदे

    दोहा=

    पहले -तीसरे चरण में १३ मात्राएँ ,[6+4+1+2,/,3+3+4+1+2]

    दूसरे–चौथे चरण में ११ मात्राएँ[6+4+1//3+3+2+2+1]

    • महातम मिश्र

      प्रथम आप का आशीष मिला यह मेरा सौभाग्य है आदरणीय श्री राजकिशोर मिश्र जी, द्वितीय आप का सुझाव पाकर प्रेरणा मिली, आभार सर……जय माँ शारदे……

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद मित्र रमेश कुमार सिंह जी, बहुत दिनों बाद आप की उपस्थिति से मन खुश हों गया महोदय

  • दोहे अछे लगे .

    • महातम मिश्र

      सादर धनयवाद आदरणीय ब्रम्हा जी, आभार सर आप को दोहों ने मुग्ध किया

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर रचना

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीया सुश्री विभारानी श्रीवास्तव जी, आप को दोहे सुन्दर लगे मेरी लेखनी को बल मिला आदरणीया, आभार

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