नव अंकुर बन निकल जाइए
जिन्दगी में अपने सपनों का बीज बोईए।
जीवन में अद्धभुत परिणाम पा जाइए।
दुनिया में लोगों के मार्गदर्शन के लिए,
इनके बीच नव अंकुर बन निकल जाइए।
पथभ्रष्टों को राह दिखलाकर वापस जाइए।
सज्जनों को राह बतलाकर वापस जाइए।
यहाँ सब अपने पथ से हो गये हैं विमुख,
इन्हें जीने की कला सीखाकर वापस जाइए।
भावात्मक मुश्किलों से यहाँ सभी को छुड़ाईए।
इन्हें निराश होने से सभी लोगों को बचाईए।
यहां पर सभी इन्द्रियां शिथिल होती जा रही है।
शिथिलता आने से पहले सभी को बचाइए ।
अपने ख्वाबों में उड़ान भर कर जाईए।
गगन में बादलों की तरह छा जाईए।
घुमड़-घुमड़ कर सभी दिशाओं में जाकर,
बरस कर धरा को उपजाऊ बनाईए।
अपने सपनों के मुकाम पर पहुँच जाईए।
तन-मन से अपने ख्वाहिशों को पूरा कर जाईए।
यहाँ पर लोगों को अच्छा संदेश देने के लिए,
इनके बीच नव अंकुर बन निकल जाईए।
— रमेश कुमार सिंह /०७-०८-२०१५
बढिया !
सुंदर रचना
सहृदय स्नेह के लिए आभार एवं सादर धन्यवाद!नमन!