खो गई है बेटियाँ
नन्ही हथेली में
पकड़ना चाहती है चाँद को ।
जिद्दी करके
पाना चाहती है चाँद को ।
छुप जाता है जब
माँ को पुकारती पाने चाँद को ।
थाली में पानी भरकर
परछाई से बुलाती माँ चाँद को ।
छपाक से पानी में
हाथ डाल पकड़ना चाहती चाँद को।
छुपा-छाई खेलते हुए
बिटियाँ पा जाती है चाँद को ।
चाँद तो अब भी है आकाश में
बिटियाए कम हो गई पाने चाँद को ।
खो गई है बेटियां
माँ ए केसे कहे ये बात चाँद को ।
संजय वर्मा ‘दृष्टि ‘
वाह वाह !