कविता

भक्ति रस — भजन 1

ओ छलिये काहे छल दिन रात करे
चार दिवस फिर क्यों न डरे
ओ छलिये काहे तू ……

घट घट में वो कौन विचरता
समझ के क्यों खुद से है परे
ओ छलिये काहे तू……

किसको छलता ओ रे भोगी
बात बात काहे घात करे
ओ छलिये काहे तू…..

क्या है तू और क्या तेरी काया
सोच ले बन्दे क्या है कमाया
ओ छलिये काहे तू….

ओ छलिये काहे छल दिन रात करे
चार दिवस फिर क्यों न डरे ….

— अंशु

One thought on “भक्ति रस — भजन 1

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा भजन !

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