कविता

“तुकांत गीत”

कभी देखता हूँ बुत को कभी खुद को देखता हूँ
यह शहर है हमारा मै इसके कद को देखता हूँ ||

अरमानों का गला घोंट जाती हैं रह-रह गलियां
उदास मंजर में हंसी मै इसके हद को देखता हूँ ||

कितना बाकी है सहना कोई तो बताये गिनती
डर डर कर जीना मै इस नियति को देखता हूँ ||

हर जुर्म का हिसाब भोली जनता के माथे पर
करेगा फैसला ईश्वरमै उसकी रहम को देखता हूँ ||

मर गयी कैसे नियति हर चौपाल पर रे शोहरत
इंशानी रूप में मै यह किसकी शकल को देखता हूँ ||

अच्छा होता हम पुराने विचारों में ही रहते
नए मिजाज में मै हर दिन कलह को देखता हूँ ||

महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

6 thoughts on ““तुकांत गीत”

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    अति सुंदर रचना

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय सुश्री विभारानी श्रीवास्ताव जी, आभार महोदया

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद मित्र रमेश सिंह जी

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    अतीव सुंदर

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय श्री राजकिशोर मिश्र जी, पटल पर आप के सादर आगमन से बहुत ख़ुशी मिली महोदय, स्नेहकाक्षी हूँ…….

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