कहानी

मेरी लाइफ लाइन

झुन्झुलाते हुए निमिषा ने फ़ोन बिस्तर पर पटक दिया और बुदबुदाने लगी- “कितना बिजी रहते हैं आप ? मेरे लिए तो फुर्सत ही नही आपको। बात मुझसे करते हुए भी आँखे कंप्यूटर स्क्रीन पर अटकी रहती होंगी ऑफिस में |  मेरी बाते सुने बिना ही हाँ न का जवाब आता रहता हैं ”

सुनील एक मल्टीनेशनल कम्पनी में मैनेजर हैं . एक तो प्राएवेट नौकरी उस पर मिलने वाले  इतने टार्गेट| अब वो  कैसे  कैसे समझाए निम्मी को .यह पत्नियां भी कई बार सिर्फ अपने लिए सोचती हैं  घर की परेशानियां इनको अजगर सी लगती और ऑफिस की दिक्कतें अन्नाकोनडा सी होते हुए भी हमारे  जहन में छुपी रहती थी।

शादी के 17 साल बीत गये थे| परिवार की जिम्मेदारियां पूरी करते करते कनपटी पर सफ़ेद बालों की चांदनी  बिखरने लगी थी एक छोटी सी कंपनी में क्लर्क की नौकरी से  सुनील आज इतने बड़े ओहदे  पर पहुँच गया था तो सिर्फ और सिर्फ अपनी  अपनी मेहनत और इमानदारी से काम करने के  बलबूते पर |
16 साल का किट्टू और 14 साल का बिट्टू अपनी अपनी कक्षा में अच्छे स्थान प्राप्त करते थे , माँ – बाबा सुख से अपना बुदापा बिता रहे थे | निम्मी को अब फुर्सत के कुछ पल मिलने लगे थे तो उसके अरमानो ने भी उड़ान भरनी शुरू कर दी थी| उसने घर पर खाली समय में पेंटिंग्स बनानी शुरू कर दी थी |पर कितनी पेंटिंग बनाती?

कुछ ही दिनों में उसकी बोरियत फिर से शुरू हो गयी |अब उसका पूरा ध्यान घर-भर पर लगा रहता | कौन क्या कर रहा हैं , कहाँ हैं? बस सारा दिन यही उधेड़बुन में लगी रहती । बच्चो को जरा देर हो जाए ट्युशन से आने में , तो घर आँगन में चक्कर लगाने शुरू कर देती। माँ अगर दो से तीन बार किसी बात को पूछ ले तो हमेशा से हँसने वाली निम्मी अब चिडचिडा जाती| बच्चे भी परेशान हो जाते कि माँ को हुआ क्या हैं ? अब स्कूल सेआकर बच्चे छोटी छोटी बातें भी माँ को नहीं बताते।  क्या पता माँ किस बात पर कैसा रियेक्ट करे |

उम्र और व्यस्तता एक नारी को इतना नही तोड़ते जितना एकाकीपन और एकरसता। सारा दिन घर भर के लिए  मरने – खपने वाली नारी एकाकी हो जाती हैं उम्र के चौथेपड़ाव पर  ,जहाँ  बच्चो को  माँ की जरुरत परोक्ष रूप से होती हैं प्रत्यक्ष  रूप से नही|  उनकी अपनी एक दुनिया बसने लगती हैं|  पति अपनी दुनिया में बिजी हो जाते हैं  और एक गृहणी  घर के अलावा कुछ सोच नही पाती| होती होगी और महिलाये जो घर के साथ बाहर भी खुश रहती होगी पर निम्मी की दुनिया सिर्फ उसके बच्चे और सुनील के माँ- बाबा थे | सुनील का प्यार उसके लिय सब कुछ था| और इस तरह की  समर्पित सी लडकियां कुछ अपने लिय सोच भी  नही पाती |ऐसे  में  कुछ  आत्ममुग्ध  लडकियां शादी के बाद नून तेल लकड़ी (कार घर बैंक बलेंस जिम्मेदारिय बच्चो )के चक्कर में फंस कर रह जाती हैं और तब  प्रेम का कोना उनका सूना सा होने लगता हैं| रूटीन से पति पत्नी का मिलना एकरसता सा भर जाता है।

निमिषा बहुत ही शोख चंचल परन्तु समझदार  लड़की थी| सुनील को याद हैं कि  शादी के शुरू के दिनों में कैसे उसको रोजाना नए नए रूप में मिलती थी| जब कहीं घूमने जाते तो अच्छे से तैयार होकर निकलती थी | उसका सादापन  इक सौंधापन लिए होता था | कपडे बहुत ज्यादा नहीं थे परन्तु उनको इस सलीके से पहनती थी तब  लगता ही नहीं था कि  पहले भी कितनी बार उस लिबास को पहन चुकी हैं | रहती अभी भी साफ सुथरी हैं| परन्तु अब उसको कही बाहर  जाने के लिय तैयार होना मुसीबत सा लगता हैं घर घुस्सू होकर रह गयी हैं |

सुनील  ऑफिस में परेशान हो गया ………निम्मी उसकी लाइफ़ लाइन हैं अगर वोह इस तरह उदास और निराश होने लगेगी तो कैसे चलेगी जिन्दगी ?अगर आज वोह दिन रात मेहनत करता हैं ऑफिस में तो अपने घर परिवार के लिय न| . उसका भी मन करता हैं की कभी अपने लिय जिए ,कभी खोजाये अपने भीतर |

लोग हमेशा नारी मन की कोमल भावनाओ का बखान करते हैं| एक पुरुष भी भीतर से कोमल होता हैं उसका मन भी चाहता हैंकि उसके किये का उसको क्रेडिट  मिले| उसकी मेहनत  को समझा जाये  |पर होता क्या हैं पुरुष को एक बरगद का पेड़ जैसा समझ लिया जाता हैं .| जो सब सुरक्षा दे आश्रय दे  सहारा दे परन्तु खुद हर मौसम में अडिग सा खड़ा रहे  | जबकि हर पुरुष भी कोमल भावनाए  रखता हैं  |

परेशानियों में उसके माथे परभी  बल पढ़ते हैं|  वोह भी रोता हैं जब उसका दिल टूटता हैं  | परन्तु उसके आंसू कभी कोई देख नही पाता  | दर्द अपनों का उसकी आँखे भी पढ़ लेती हैं परन्तु एक नारी जैसा बयां नही कर पाती उसकी जुबान  |

मन  उदास हो गया सुनील का |  जरा भी नही समझती निम्मी कि  काम का कितना दबाव रहता हैं ऑफिस में और ऐसे दबाव में काम करने पर अगर जरा भी त्रुटी हुयी तो नौकरी में कितनी परेशानिया खड़ी हो सकती हैं | . पर क्या करे काम तो करना ही होगा न .. सोचते हुए उसने अगली फाइल को उठाया और पढने लगा।

उधर  निम्मी ने भिगोने में चावल डालकर गैस पर चढा  दिए  |…….. चावल के हर दाने के साथ साथ उसका कच्चा मन भी पकने लगा …उम्र बढ़ रही हैं| परन्तु जरा भी परिपक्वता नही आ रही उस में  .क्यों कई बार बच्चो सी बिफर जाती हैं वो ?क्यों आज भी उसका मन पहले की तरह चाहता हैं कि सुनील शाम को घर आये |  आते ही उसे अटेंड करे  | उसकी दिन भर की बाते सुने /माने  और रात भर उसकी तारीफ करता रहे |  प्यार करता रहे | मन हैं न कितना कमीना हो जाता हैं कभी कभी सिर्फ अपने लिय सोचने लगता हैं | दूसरे पर क्या बीत  रही हैं जानकर भी अनजान बने रहना चाहता हैं  | ….. चलो रात को सुनील से इस पर अच्छे से बात करूंगी  |

सोचते सोचते निम्मी ने रसोई का सारा काम ख़तम किया और गुलाबी सूट पहन कर  सुनील के आने की बाट जोहने लगी।                                                               ऑफिस का फ़ोन बज रहा था| सुनील आँखों से फाइल पढ़ रहा था और मन ना जाने कितनी उधेड़ बुन में व्यस्त था |…… फ़ोन कानो में लगाकर जैसे उसने हेल्लो कहा |उधर  से बॉस का कॉल था कि  उसको उत्तराखंड के एक शहर  में एक महीने की स्पेशल ड्यूटी पर जाना होगा ….. तनख्वाह डबल मिलेगी| वहाँ कम्पनी  को नया ऑफिस खोलना हैं तो सुनील को वहां  के कर्मचारियों को काम कैसे करना हैं ट्रेनिंग  देना होगा ….सुबह १ ०  से ५ बजे तक ड्यूटी होगी …… सुनील ने मरे हुए मन से जैसे हाँ कहा |.उसे पता था निम्मी और गुस्सा हो जाएगी एक तो वोह पहले ही नाराज रहती हैं कि आप वक़्त नही देते उस पर एक महीना ………… तो क्या ?

उहापोह में फंसा सुनील घर के लिय उठ खडा हुआ |आज थोड़ा जल्दी जाया जाए  मैडम जी नाराज हैं आज सोचते सोचते उसने चपरासी को अपनी कार निकालने  को कहा। रास्ते  में रेड लाइट पर एक लड़की गजरे बेच रही थी कितना पसंद था न निम्मी को मोगरे का गजरा ……. उसने २ ० का नोट देते हुए गजरा ले लिया था जिसे अपने  लैपटॉप बैगमें छिपाकर रख भी लिया

घर में घुसते ही उसे अपने पसंदीदा मसाले वाले बैगन की खुशबू आई | ह्म्म्म!!!!!!!! तो निम्मी को भी अफ़सोस हैं आज दिन में मुझे गुस्सा करने का …. निम्मी की आदत थी जब भी नाराज होती तो उसके बाद सॉरी कहने का उसका अलग ही अंदाज़ होता | उस दिन उसकी बिंदिया का साइज़ थोडा बड़ा होता और घर में रसोई से उसकी मनपसंद खाने की खुशबू आती |….शब्दों से नही अपनी भाव भंगिमाओ से सॉरी कहती थी| उसके बाद का सारा काम  सुनील का होता था| उसके प्यार का प्रति उत्तर उसे उसी सकारात्मकता से देना होता था| बस बिना सॉरी शब्द का प्रयोग किये वोह एक दुसरे के और करीब हो जाते| सब गुस्सा गिले शिकवे भूल कर …

सुनील आज हाथ मुह धोकर जैसे ही टेबल पर खाने के लिए बैठा तो माँ ने कहा “सुनील इस बार छुट्टियों में बच्चो को लेकर गाँव जाने की सोच रही हूँ …. बच्चो में गांव के संस्कार भी होने चाहिए न उनको  भी अपनी मिटटी से जुड़े रहना चाहिए और वहां के रिश्तेदारों से जुडाव भी महसूस करना चाहिए  ..ऐसे तो बच्चे भी पत्थर की इमारत बनकर रह जायेंगे| अगर उन में  प्यार का अपनएपन की भावनाओ को सागर नही बहेगा तो”
…… निम्मी झट से बीच में बोल उठी” पर माँ मैं तो अकेली हो जाऊंगी न | घर भर में अगर आप बच्चो को लेकर चली जाएगी | इनके पास तो वैसे भी वक़्त नही हैं ”
चहेरे पर हलकी सी नाराजगी का भाव लिए  हुए निम्मी के चेहरे को देख सुनील आज परेशान नही हुआ उसका मन तो कुछ और ही सोचने लगा
बच्चो का मन तो गाँव जाने के नाम से ही खुश हो गया | दादी गांव में क्या क्या होगा |  दादू गांव में यह करेंगे वोह करेंगे  | ……. बस बच्चे और उनके दादी बाबा खुद में व्यस्त हो गये |  रविवार को जाने का कार्यक्रम बन गया |

सबको खुश देखकर निम्मी और ज्यादा कुढने लगी . |  बर्तनों को समेट  ते हुए उसे खुद पर गुस्स्सा आने लगा | . बेकार मैंने दिन भर किचन में बिताया |  इनको तो मेरी परवाह ही नही …….. कैसे एक दम से बच्चो को गांव भेज रहे हैं  | ..यहाँ रहते तो पढाई  करते  , कुछ सीखते   | वहां  क्या करेंगे ?कौन   देखेगा कि  कितना होम वर्क किया |  ..अब अच्छी बहु हूँ न , चुप ही रहना होगा पर सवाल बच्चो का हैं कैसे चुप रहू ? पर अंदर का सच कुछ और कहता था निम्मी को बच्चो के गांव जाने से नही अपने अकेलेपन से डर लग रहा था|
मन ही मन खीझती काम ख़तम कर निम्मी कमरे में आई तो लाइट ऑफ थी  | तो आज जनाब ने हमारे आने की इंतज़ार भी नही  किया |   .ठीक हैं हम ही पागल हैं न, जो इनका मनपसंद खाना बनाये  | इनके लिय आज सज संवर कर बड़ी वाली बिंदी लगाकर रेडी हुए  | ..साहेब जी ने आँखे भर कर एक बार देखा भी नही | ..सही कहती हैं सविता .. शादी के कुछ बरस बाद पति को पत्नी में रूचि नही रहती ….. मैं नही मानती थी यह बात पर आज सच लग रही हैं ……. गुस्से में निम्मी ने बाथरूम में घुसकर जैसे ही लाइट का बटन ओन किया सामने शीशे पर उसकी लिपस्टिक से लिखा था ..
“”. थैंक यू फॉर बैंगन और उफ्फ्फ  यह तेरी बड़ी सी बिंदी !!!!…… सो जाऊ तो जगाना मत 🙂
अब तो निम्मी का गुस्सा काफूर.. और हंसी  आगयी उसको .यह क्या हैं मेरी नयी  लिपस्टिक ख़राब कर दी ……….. और जगाना मत से क्या मतलब !!! पर बिंदी …….अरे हाँ इसका मतलब उन्होंने नोटिस किया मेरी बिंदी को . मन पुलकित हो उठा |

निम्मी समझ नही पा रही थी वोह गुस्सा करे या जाकर हमेशा की तरह जगा दे सुनील को ..
……
”   नही!!!!! आज तो मैं नही जगाऊँगी ” सोचकर निम्मी ने जोर से दरवाजा बंद किया और बिस्तर के दुसरे किनारे पर जाकर लेट गयी |  कुछ पल बाद उसको मोगरे की भीनी भीनी खुशबू महसूस हुयी  |  अरे नही यह मेरा वहम हैं सोचकर सोने की कोशिश  करने लगी |. कभी इस करवट कभी उस करवट .पर मोगरे की  खु श्बू पूरे कमरे में फ़ैल रही थी … दरवाज़े बंद होने के साथ अब वोह जैसे निम्मी को अपने आलिंगन में लेने को आतुर थी  |  निम्मी ने झट से उठकर कमरे लाइट जला दी  | सामने बिस्तर पर दोनों के तकियों के बीच में गजरा था उसके साथ एक लाल गुलाब और एक ख़त |

निम्मी ने पहले गजरे को उठाकर एक गहरी साँस ली |  मानो उसकी खुशबू से अपने तन और मन को सुवासित कर लिया |  मन के सारे  कडवे कलुषित भाव मानो उड़ गये हो और एक प्रेम भावना ने उसको चारो तरफ से समेट  लिया .| ..और ख़त यह क्या हैं ……ख़त को खोलते ही उसने देखा कि उत्तराखंड के एक पहाड़ी शहर में एक महीने रहने का मौका ……….निम्मी ख़त को पढ़ रही थी आँखों में ख़ुशी के आंसू बह रहे थे … कितना मन था न उसका कि  शादी के बाद किसी पहाड़ी शहर में हनी मून पर जायेंगेपर तब आर्थिक हालत ऐसे न थे और अब ……. उसको लगा कि  सुनील पर बिला  वज़ह गुस्सा करती आई थी वोह

पर इतने पैसे कहा से आये …… नही मना कर देगी वोह| सिर्फ मेरी ख़ुशी के लिय इतने पैसे ख़राब करना सही नही हैं| बच्चो के लिय इस वक़्त पैसे की जरुरत हैन. अचानक उसको अपने चारो तरफ मजबूत बाँहों  का घेरा कसते हुए महसूस हुआ ………”
तो आप सोये नही थे जनाब”
.मुस्कराते हुए निम्मी ने कहा ……
” जी नही जब तक मेरी निम्मी न आजाये, मैं आज तलक सोया हूँ ……”

“अब खुश हो न ….मैंने बच्चो को गांव भेजने का कार्यक्रम इसी लिय बनाया हैं ताकि तुम मेरे साथ अच्छे और बेफिक्र मन से आ सको   माँ को फ़ोन करके सब पहले से बता दिया था  उनका ही सुझाव था  बच्चो के संग गांव चले जाने का ……. और हाँ हमारा ज्यादा खर्च नही होगा क्युकी कंपनी भेज रही हैं मुझे वह अपने काम से ….”…..
…  निम्मी की आँखे ख़ुशी से छलछला उठी उसने झट से खुद को  छुपा लिया सुनील की बाहों में  और उसकी आँखे सपने देखने लगी पहाड़ी मॉल रोड पर हाथ मैं हाथ लिय सुनील के साथ घूमने के |
छोटी छोटी खुशियाँ झोली में समेट लेने को आतुर  एक स्त्री का मन कितना कोमल होता  हैं इन्द्र धनुषी रंगों से सरोबार  |कोई भी स्त्री ऐसी खुशियाँ नही मांगती जिनको देना संभव नही होता उसकेपतिके लिए और कोई भी पति अपनी पत्नी  की छोटी छोटी खुशियों को देकर जब चमकते हुए जुगनू उसकी आँखों में देखता हैं तो प्रफुल्लित हो उठता हैं | साकार लगता हैं उसको अपना वृक्ष होना जिस पर लता सी  लिपटी रहती हैं उसकी लाइफ लाइन |निम्मी का   दिल जोरो से धड़कने लगा  …….और सुनील की बाहों के कसते घेरे संग  प्रफुल्लित हो उठा उसके मन का हर कोना .|

— नीलिमा शर्मा

नीलिमा शर्मा (निविया)

नाम _नीलिमा शर्मा ( निविया ) जन्म - २ ६ सितम्बर शिक्षा _परास्नातक अर्थशास्त्र बी एड - देहरादून /दिल्ली निवास ,सी -2 जनकपुरी - , नयी दिल्ली 110058 प्रकाशित साँझा काव्य संग्रह - एक साँस मेरी , कस्तूरी , पग्दंदियाँ , शब्दों की चहल कदमी गुलमोहर , शुभमस्तु , धरती अपनी अपनी , आसमा अपना अपना , सपने अपने अपने , तुहिन , माँ की पुकार, कई वेब / प्रिंट पत्र पत्रिकाओ में कविताये / कहानिया प्रकाशित, 'मुट्ठी भर अक्षर' का सह संपादन