कविता

किसान की आत्महत्या पर बैलों का विलाप

इस मार्मिक चित्र पर कुछ पंक्तियाँ कहने का प्रयास किया है:-

सजल नयनों से वृषभ कहें,
स्वामी तुम क्यों मुख मोड़ चले,
संग रहना था आजीवन तो,
क्यों बीच राह में छोड़ चले,
माना परिस्थितियां कठिन थीं पर,
पहले भी दिन ये आए थे,
तेज बाढ़, भीषण अकाल,
मिलजुलकर साथ बिताए थे,
खेत की नीरवता में हमको,
दिल का हाल सुनाया था,
स्वयं भी रोए थे कितना और,
कितना हमें रूलाया था,
कहा था तुमसे साहूकार से,
बिल्कुल कर्ज़ ना लेना तुम,
उस निर्दयी के हाथ में अपने,
हाथ ना काट के देना तुम,
सूखा चारा खाकर भी हम,
पूरा ज़ोर लगा देंगे,
हम और तुम मेहनत करके,
फिर से फसल उगा लेंगे,
मगर भाग्य से लड़ ना पाए,
क्यों जीवन से हार गए,
अपने बीवी-बच्चों को भी,
तुम जीते जी मार गए,
क्यों दें दोष प्रकृति को हम,
प्रकृति तो सबकी माता है,
तेरी अकाल मृत्यु पर,
रोया स्वयं भाग्य विधाता है,
आत्महत्या नहीं है कोई,
हत्या है सीधी सादी ये,
मारा है तुमको लोगों ने,
मिलकर बड़ी चालाकी से,
तुमको मारा है देश के,
पाखंडी नेताओं ने,
तुमको मारा है मानव की,
बढ़ती हुई इच्छाओं ने,
तुमको मारा सूदखोरों ने,
साहूकार की चालों ने,
तुमको मारा मंडी वाले,
सचिवों और दलालों ने,
अगर हमारे बस में होता,
इनको मजा चखा देते,
एक-एक कातिल को,
चुन-चुनकर कड़ी सजा देते,
लेकिन ये ना हो पाएगा,
निर्बल हैं बेकार हैं हम,
इन रक्तपिपासु भेड़ियों के,
सम्मुख कितने लाचार हैं हम,
पशु हैं हम लेकिन मानव की,
पशुता पर शर्मिंदा हैं,
आहत मानवता अब शायद,
पशुओं में ही जिंदा है।

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

2 thoughts on “किसान की आत्महत्या पर बैलों का विलाप

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    मार्मिक रचना

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति !

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