कविता

कविता : काश तुम हो सकते

काश तुम हो सकते,
मेरे……….. ज़रा से,
नहीं पूरे तो भी गम नहीं,
बस………. ज़रा से,
यूँ ही चलता रहता,
कुदरत का निजाम,
सूरज मगरिब से निकलता,
तब भी और सो जाता,
थक कर मशरिक में,
वही चाँद, वही तारे,
वो हसीं हसीं नज़ारे,
कुछ भी ना बदलता लेकिन,
बहुत कुछ बदल जाता,
सूरज में कुछ और आग होती,
चाँद कुछ और चमकीला होता,
तारे खिलखिला के हँसते,
अगर तुम हो जाते,
मेरे……… ज़रा से,

काश तुम हो जाते,
मेरे……… ज़रा से,
कुछ फर्क नहीं पड़ता,
इस बेदर्द दुनिया को,
हाँ थोड़ी जलन होती,
आस-पास के लोगों को,
कुछ गुस्साते, कुछ धमकाते,
कुछ बातों के तीर चलाते,
पर जब थक जाते तो कहते,
छोड़ो हमें क्या करना है,
और फिर मशगूल हो जाते,
किसी और के किस्से में,
मगर मुझे जिंदगी मिल जाती,
अगर तुम हो जाते,
मेरे……… ज़रा से,

काश तुम हो जाते,
मेरे……….ज़रा से,
तो पूरी हो जाती,
मुहब्बत की गज़ल,
मैं मिसरा था जिसका,
और तुम काफिया शायद,
मैं अधूरा ही रह गया,
उन दो लफ्जों के बिना,
जो मिलते तुम्हारे आने से,
पर ऐसा हो नहीं पाया,
गज़ल मुक्कमल हो जाती,
अगर तुम हो जाते,
मेरे……… ज़रा से,

काश तुम हो सकते,
मेरे…………ज़रा से,
नहीं पूरे तो भी गम नहीं,
बस………. ज़रा से,

— भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

One thought on “कविता : काश तुम हो सकते

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर रचना

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