ग़ज़ल
मुस्कुराते होंठ आँखों में नमी कैसे कहूँ
पास में दुनिया मगर, तेरी कमी कैसे कहूँ
आप को खोकर हमारी जिंदगी बेजार है
क़िस्मतों में स्याह रातें, चांदनी कैसे कहूँ
भूल बैठे हैं खुदा को आपको पाकर सनम
पूजते हैं आपको, पर बन्दगी कैसे कहूँ
आप से जिन्दा हमारी धड़कनों की चाल है
साँस चलती है मगर, अब जिंदगी कैसे कहूँ
‘धर्म’ तेवर तल्ख तेरा रास जग को है नहीं
चाटुकारी सीख ले, आदत भली कैसे कहूँ
— धर्म पाण्डेय