पाखण्ड !!!!
किसी जंगल में एक सिंह और एक लोमड़ बड़े प्रेम से रहते थे, जंगल के बाकी पशु उनकी ये मित्रता देख बड़े विस्मित होते सभी कहते ऐसा अद्भुत आश्चर्य कभी न देखा न सुना ! तभी जंगल के बूढ़े भालू ने कहा “ये मित्रता नहीं है ! मित्रों ! ये समझौता है. ” तभी ऐरावत हाथी बोल पड़ा “समझौता कैसे हो सकता है काका !”
“हाँ ऐरावत जब दो धूर्तों में परस्पर अबाध मित्रता दिखाई पड़े तो उसे कभी भी मित्रता या प्रेम समझने की भूल मत करना जितना मुझे मालूम था, बता दिया बाकी तुम लोग खुद समझदार हो। लेकिन होशियार रहना कभी भी लोमड़ की बातों में मत आना चाहे वो तुम्हारे लाभ की ही क्यों न बात करे लेकिन लालच न करना और उसकी बातों में मत आना।” सभी ने काका की बात का समर्थन किया और अपने अपने काम में लग गए।
इधर लोमड़ कभी किसी बकरी तो कभी किसी भेंड़ का ही शिकार कर पाता जिसे दोनों मिल कर खा लेते लेकिन सिंह का पेट नहीं भरता। उसका मन तो किसी हिरन अथवा किसी भैसे का मांस खाने के लिए लालायित रहता। वो रोज ही लोमड़ से कहता मित्र! कुछ तो व्यवस्था करो नहीं तो अतृप्त ही मर जाऊँगा। लोमड़ को भी रूखा-सूखा भोजन रास नहीं आ रहा था। उसने सिंह से कहा- ‘जैसा मैं कहता हूँ तुम वैसा ही करना तो भोजन का प्रबंध हो सकता है और हम पेट भर भोजन करेंगे !’ सिंह को और क्या चाहिए था वो ख़ुशी ख़ुशी मान गया ।
तभी लोमड़ ने कहा मैं जंगल में खबर फैला दूँगा कि राजा की मृत्यु हो गयी है और इस दुःख में मैंने सन्यास ले लिया है और मुझे ज्ञान प्राप्त हो गया है। अब मैं अपना जीवन परोपकार एवं सेवा में ही व्यतीत करूँगा। लेकिन तुम गुफा के अंदर ही रहा करना जब भी कोई तुम्हें श्रधांजलि देने आये तभी तुम उसका शिकार कर लिया करना। बस ऐसे ही अब हम दोनों की जीवन नैया पार हो सकती है।
शेर बहुत प्रसन्न हुआ ये सुनकर उसने कहा “भोजन के लिए तो मैं गुफा में कैद भी रह सकता हूँ मित्र ! बस तुम्हारी ये योजना सफल हो जाये तो समझो हम दोनों के सब पाप खत्म हो गए।”
अब लोमड़ ने एक रामनाम की चादर ओढ़ ली और तिलक लगा के खूब जोर जोर से भजन गाने लगा. पशुओं का ध्यान बरबस ही उसकी तरफ जाता तभी एक वानर ने पेड़ पर बैठे बैठे ही पूछा, ‘अरे मित्र क्या हुआ? आज तो विचित्र दिख रहे हो?’
लोमड़ ने आँखों में आँसू भरकर कहा “मित्र! कुछ दिन पूर्व ही मेरे परम मित्र का निधन हो गया और तभी से मुझे वैराग्य हो गया है ! मैंने तप किया और मुझे ज्ञान प्राप्त हो गया है अब बस राम नाम जपते हुए ही प्राण त्याग दूँगा ये संसार से अब मुझे क्या प्रयोजन जब मेरा परम मित्र ही नहीं रहा तो जी कर क्या करूँगा?”
वानर उसके इन शब्दों को सुनकर बहुत विस्मित हुआ सोचने लगा ये उलटी गंगा कैसी बह रही है और उसने अन्य मित्रों को सतर्क कर दिया। इधर दो तीन दिन से जब पशुओं ने लोमड़ को ध्यान में देखा तो उन्हें लगा, नहीं !! लोमड़ बदल गया है बेचारा खाली पानी पीकर प्रभु भक्ति में लीन रहता है धीरे धीरे पशुओं की भीड़ लगने लगी उसके पास.
अब तो लोमड़ बड़ा प्रसन्न बस वो उन्हें अपने साथ ले जाने के ही प्रयत्न में था कि बूढ़े भालू ने देख लिया और तुरंत आ गया पूछने लगा “कहाँ ले जा रहे हो सब को ?”
लोमड़ ने रोनी सूरत बनाकर कहा “ये सब राजा को श्रद्धांजलि देने जा रहे हैं बस कुछ दिन पूर्व ही उनका निधन हो गया है ।” भालू ने कहा “मित्रों रुको….एक कदम भी मत आगे मत बढ़ाना !तुम्हें क्या लगता है ? किसकी बातों में आ रहे हो ?” तो चम्पू हिरन बोला काका मित्र लोमड़ को ज्ञान प्राप्त हो गया है उन्होंने कई दिनों घोर तपस्या की है अब हम सब उनके गुरु के दर्शन करने जा रहे हैं ……
भालू ने तभी कहा मित्र मूर्खता मत करो ! रुको । ज्ञान तो चंद्रमा की तरह शीतल जल की तरह निर्मल एवं वायु की तरह विस्तृत होता है तथा बहुत शुद्ध होता है ऐसे अशुद्ध और अपवित्र लोमड़ को कुछ दिन में ज्ञान कैसे प्राप्त हो सकता है। विचार करो !! ये इसकी कोई चालाकी तो नहीं ?अगर इसे ज्ञान प्राप्त हो ही गया है तो इसे दुनियादारी से क्या प्रयोजन. चलो नहीं तो अभी ही कोई न कोई मारा जायेगा।
यह सुनकर सभी भाग खड़े हुए। तभी लोमड़ अपनी चादर फेंकते हुए हिरन पर झपट पड़ा और मुश्किल से हिरन ने अपने प्राण बचाये ।
— अंशु प्रधान
ज्ञान देती रोचक कहानी