धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ब्राह्मण वर्ग के वेदाध्ययन से दूर होने से देश व संसार का पतन हुआ: उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ

ओ३म्

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में शरदुत्सव का समापन दिवस–

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के पांच दिवसीय शरदुत्सव के आज समापन दिवस 11 अक्तूबर, 2015 के सभी कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न हुए। प्रातः 5 बजे से 6 बजे तक योग, ध्यान, प्राणायाम व आसनों का प्रशिक्षण स्वामी दिव्यानन्द जी ने धर्मप्रेमियों को दिया। प्रातः 6.30 बजे से अथर्ववेद पारायण यज्ञ आरम्भ हुआ जिसकी आज पूर्णाहुति सम्पन्न हुई। यज्ञ के पश्चात अथववेद परायण यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती जी ने यज्ञ में भाग लेने वाले सभी यज्ञ प्रेमियों को आशीर्वाद प्रदान किया। यज्ञ के बाद का कार्यालय आश्रम के विशाल सभागार में आरम्भ हुआ।

आज के आयोजन का मुख्य आकर्षण आर्य विद्वान आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का समाज व देश के लिए हितकारी उद्बोधन व प्रवचन था। उन्होंने कहा कि देश को पतन का कारण है ब्राह्मण वर्ग का वेद के ज्ञान से हटना। चार वर्ण है ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। ब्राह्मण अतीत में अन्य तीन वर्णों का मार्ग दर्शन करते रहे। लेकिन जब ब्राह्मण वेदविहीन हो गया, तो समाज का मार्गदर्शन करने वाला ही कोई नहीं रहा। तब इसका भयंकर परिणाम समाज में आया जिसे महाभारत काल के 5000 वर्षो बाद भी हमें भुगतना पड़ रहा है। यह दुःखदायी परिणाम ब्राह्मणों के वेद विहीन होने के कारण भुगतना पड़ रहा है। ब्राह्मण का कार्य वेद का अध्ययन व प्रचार करना था। ब्राह्मण का धन यह भौतिक धन नहीं था अपितु ब्राह्मण का वास्तविक धन वेद था। जब ब्राह्मण भौतिक धन के चक्कर में आ गया और वह कार, कोठी और रूपये कमाने लगा तो वेद के पढ़ने वालों का लोप हो गया। इससे ज्ञान का लोप होकर अंधकार हो गया और इतना अंधकार छाया कि पशुओं को काट-2 कर उनके मांस की यज्ञों में आहुतियां दी जाने लगी। स्त्रियों को पुरूषों के मर जाने पर जिन्दा जलाया जाने लगा। स्त्रियों को प्रताणित करने वाले यह लोग शंख, घण्टे व घडि़याल बजाते थे जिससे कोई स्त्री की चीख व चिल्लाने की आवाज को न सुन सके। लड़की पैदा होते ही मार दी जाती थीं। इसके प्रमाण हमारे पास हैं परन्तु समयाभाव के कारण उसे अभी प्रस्तुत नहीं कर सकते। इतना बताना है कि देश व समाज में किना अन्धकार छा गया था। अन्धकार के इस वातावरण में महर्षि दयानन्द रूपी एक प्रकाश की किरण गुजरात में पैदा हुई और उस किरण ने ऐसा कार्य किया कि हम सब लोग उस किरण के पीछे ही तो दौड़ रहे हैं। वही किरण तो आप लोगों के अन्दर काम कर रही है। दयानन्द ने क्या काम किया? दयानन्द ने कहा कि वेद वह ज्ञान है जो सृष्टि के प्रारम्भ ईश्वर ने दिया था। ऋषि दयानन्द ने कसौटी हमें दी है, जो इस कसौटी पर खरा उतरे, वही ईश्वर का ज्ञान है। उन्होंने कसौटी दी कि जो ज्ञान सृष्टि में सबसे पहले आता है वही ईश्वरीय ज्ञान होता है। दुनिया में जितने भी पुराण, कुरान, बाईबिल आदि ग्रन्थ हैं, यह ईश्वरीय ज्ञान नहीं है। क्यों नहीं हैं? क्योंकि यह किताबें पिछले तीन-चार हजार वर्षों में पृथिवी पर आईं हैं। इससे पहले इन किताबों व इनके पैगम्बरों का कोई वजूद ही नहीं था। आज से 1600 साल पहले न पैगम्बर साहब थे और न कुरान थी। 2015 साल पहले न ईसाई थे, न ईसाई धर्म था, न हि ईसा मसीह थे और न बाइबिल पुस्तक थी। इसी तरह पिछले तीन-चार हजार सालों में सारी किताबों का जन्म हुआ, सारे गुरूओं का जन्म हुआ और सारे मत-मतान्तरों का जन्म हुआ। इससे पहले एकमात्र वेद ज्ञान था और सारी पृथिवी पर आर्य राज्य था। भूमण्डल पर आपका राज्य था। विद्वान वक्ता का यह व्याख्यान काफी लम्बा एवं महत्वपूर्ण है। इसका शेष भाग इस भाग साहित कुछ दिनों बाद हम आपकी सेवा में प्रस्तुत करेंगे।

आयोजन में एक प्रवचन गुरूकुल पौन्धा के आचार्य डा. यज्ञवीर का हुआ। उन्होंने कहा कि वेद, वैदिक धर्म एवं संस्कृति के अनुसार प्रत्येक मनुष्य वेद अथवा ज्ञान से युक्त सत्ता है, इसलिए उसका असली नाम ‘वेद’ है। उन्होंने कहा कि संसार के सभी विद्वान स्वीकार करते हैं कि वेद संसार की सबसे प्राचीन पुस्तक है। इस तथ्य को संसार के विद्वानों से स्वीकार कराने का श्रेय महर्षि दयानन्द को उन्होंने दिया। उन्होंने बताया कि स्वामी दयानन्द ने ही स्त्रियों व शूद्रों को वेदाध्ययन का अधिकार दिया। स्त्रियों व शूद्रों को सुशिक्षित करने का स्वामी दयानन्द ने व्यापक स्तर पर कार्य किया। उन्होंने स्वामी शंकराचार्य जी के मत अद्वैतवाद को प्रस्तुत कर उस पर स्वामी दयानन्द का दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए बताया कि उन्होंने नास्तिकता को समाप्त करने के लिए अद्वैतवाद को सम्मुख कर शास्त्रार्थ किया था। गुरूकुल पौन्धा के ब्रह्मचारी प्रताप कुमार ने भी अपने ओजस्वी व देशभक्तिपूर्ण विचार प्रस्तुत करते हुए गोरक्षा का उल्लेख कर कहा कि गाय सारे विश्व की मां है। उन्होंने रासलीला को निन्दीय बताया और कहा कि यह योगिराज श्री कृष्ण जी के वास्तविक चरित्र के विरूद्ध है।

सत्संग सभा को आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तराखण्ड के यशस्वी प्रधान श्री गोविन्द सिंह भण्डारी जी ने भी सम्बोधित किया। आप 6 सौ किलोमीटर की यात्रा कर वागेश्वर से देहरादून अपने साथी व सहयोगियों सहित कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द का उद्देश्य किसी नये मत व धर्म को स्थापित करना नहीं था अपितु उनका उद्देश्य विश्व के मानवमात्र का कल्याण करना था। उन्होंने महर्षि दयानन्द द्वारा हरिद्वार में कुम्भ मेले के अवसर पर फहराई गई पाखण्ड खण्डिनी पताका का उल्लेख कर उनके साहस की सराहना की और कहा कि आज भी हम ऐसा साहस नहीं दिखा पाते। जन्मना जाति का उल्लेख कर उन्होंने इसके दोषों का दर्शन कराया। उन्होंने धर्मप्रेमियों को बताया कि स्वामी दयानन्द ने जन्मना जातिवाद का जमकर विरोध किया था और गुण, कर्म व स्वभाव पर आधारित वैदिक वर्ण व्यवस्था का सत्य स्वरूप देश व समाज के सम्मुख रखा था। ओजस्वी वक्ता ने कहा कि उनके गुरू स्वामी विरजानन्द ने दक्षिणा में स्वामी दयानन्द से उनका जीवन मांगा जो उन्होंने उनको समर्पित किया था। उन्होंने आगे कहा कि हमें आर्य समाज को गांव-गांव तथा देहात-देहात में ले जाना होगा। उन्होंने शास्त्रार्थ को पुनर्जीवित करने का भी आह्वान किया। आर्यनेता ने उत्तराखण्ड में पिछले दिनों दलितों के मन्दिर प्रवेश की घटना की चर्चा कर दलितों की मांग को उचित कहकर उसका समर्थन किया। साथ हि उन्होंने कहा कि सैद्धान्तिक दृष्टि से मूर्तिपूजा से सहमत न होने पर भी हम दलितों के मन्दिर प्रवेश के अधिकार का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज वसुधैव कुटुम्बकम और मनुर्भव की बात करता है। इसलियें सभी दलित भाईयों व अन्य बन्धुओं को भी आर्यसमाज से जुड़ना चाहिये। दलित समाज व देश का हित उनके आर्यसमाज से जुड़ने में ही है।

आज के आयोजन में आर्य जगत के विख्यात गीतकार एवं गायक श्री सत्यपाल पथिक जी के भजन भी हुए। उनका भजन था मैं पागल हूं, मस्ताना हूं, दीवाना हूं, मैं मस्तमस्त मस्ताना हूं। जो शमा जलाई ऋषिवर ने उस शमा का मैं परवाना हूं।।’ भजन को श्रोताओं ने बहुत पसन्द किया जिसका प्रमाण भजन की समाप्ती पर बजने वाली श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट थी। भजनोपदेशक श्री आजाद  सिंह लहरी, सहारनपुर ने भजन वो समय प्रभु कब आयेगा, जब इस धरती पर मानव मानव बन जायेगा।’ को मधुर स्वरों में गाकर प्रस्तुत किया। प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री रूहेलसिंह आर्य ने भी एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे डर है कि जिन्दगी कहीं नाकाम हो जाये, ये भूमि है राम कृष्ण की बर्बाद हो जाये।’ भजन प्रेरणादायक एवं कर्तव्यबोधक था। द्रोणस्थली कन्या गुरूकुयल की 6 कन्याओं ने भी एक सामूहिक भजन प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम की समाप्ती पर आर्यजगत के वयोवृद्ध सन्यासी स्वामी दिव्यानन्द जी ने सभी को आशीर्वाद दिया। सभा को वैदिक साधन आश्रम के यशस्वी मंत्री इं. श्री प्रेमप्रकाश शर्मा एवं दानवीर, विनम्र स्वभाव एवं सबका सम्मान करनेवाले यशस्वी प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी ने भी सम्बोधित किया। आप दोनों ने दूर दूर से शरदुत्सव में भाग लेने वाले बन्धुओं का आभार व्यक्त कर उनका धन्यवाद करने के साथ सबसे तपोवन के प्रति प्रेम भाव बनाये रखने और यथाशक्ति सहयोग करने की अपील की। कार्यक्रम का संचालन श्री सलिक चन्द शैलेश ने बहुत योग्यतापूर्वक किया। शान्तिपाठ के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।

मनमोहन कुमार आर्य

4 thoughts on “ब्राह्मण वर्ग के वेदाध्ययन से दूर होने से देश व संसार का पतन हुआ: उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख मान्यवर !

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री विजय जी।

  • मनमोहन जी ,लेख अच्छा लगा . ब्राह्मणों की कुरीतिआन के कारण ही यह सब अन्ध्विशास पैदा हुए .जो सती की रसम थी ,वोह इतनी घिर्नत है कि यह हिन्दू समाज पे एक कलंक है . ब्राह्मणों ने लोगों को अन्ध्विशास में डाल कर बहुत लूटा और अभी भी लूटते चले आ रहे हैं . दो सती हो रही जवान लड़किओं का आँखों देखा हाल इबन्बतुता ने अपनी जीवन कहानी में लिखा है जिस को पड़ कर रूह कांप उठती है . ब्राह्मण वर्ग को सुआमी दया नन्द जी को पड़ना चाहिए .

    • Man Mohan Kumar Arya

      लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जीं। आपका कहना सत्य है कि ब्राह्मणों द्वारा प्रचलित कुरीतियों के कारण ही सभी अन्धविश्वास जिसमें सती प्रथा भी सम्मिलित है, प्रचलित हुए थे। इन अन्धविश्वासों के प्रचलन का मुख्य कारण था कि ब्राह्मणों ने वेदाध्ययन करना बन्द कर दिया था जिससे वह अज्ञानी व स्वार्थी हो गये थे। निश्चय ही सती प्रथा के बारे में सोचने पर उस समय के लोग, जो इसको मानते थे, उनकी बुद्धि पर तरस आता है। घोर अज्ञानी व मूर्ख थे वह लोग जिन्होंने निर्दोष बेटियों को अकारण जीवित जलाकर उनकी हत्या का जघन्य अपराध किया। आज भी अन्धविश्वास घटने के स्थान पर बढ़ते ही जा रहे हैं जिसका एक कारण विद्वान व समझदार लोगों द्वारा इनका पुरजोर खण्डन न करना है। इनका खण्डन व निन्दा आवश्यक है नहीं तो अन्धविश्वास कम होने के स्थान पर बढ़ते ही जायेंगे। जो लेाग लूट रहे हैं वह स्वाथी ही कहे जा सकते हैं और जो लूटे जा रहे हैं उन्हें घोर अज्ञानी व मूर्ख ही कह सकते हैं। यह सब वेदाध्ययन व सत्यार्थप्रकाश न पढ़ने के कारण हो रहा है। कृपया बतायें कि इबन्बतुता की जीवन कहानी कहां से मिल सकती है? मैं भी उन सती हुतात्माओं का वर्णन पढ़ना चाहूंगा। यदि सम्भव हो और सामग्री छोटी हो तो उसे स्कैन कर manmohanarya@gmail.com पर मुझे कृपया इमेल कर दें। स्वार्थी लोगों से उम्मीद नहीं है कि वह स्वामी दयानन्द जी के साहित्य को पढ़ेगे। इसके लिए मनुष्य का निष्पक्ष होना अति आवश्यक है। आपकी बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद।

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