लघुकथा

भूखा कौआ

भूख और प्यास से व्याकुल कौए ने अपनी भूख घड़े के उस पानी से बुझा ली थी। पर भूख उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी। कई दिनों की लंबी यात्रा और लंबी उड़ान के कारण थकान से शरीर अलग टूट रहा था। शायद भगवान को उसकी दशा पर दया आ गयी और शीघ्र ही वह एक नगर के समीप पहुँच गया। नगर उसके लिए कुछ परिचित-सा जान पड़ा। जैसे पहले कभी वहाँ आ चुका हो, शायद किसी जनम में! जैसे ही उसे एक घर की मुंडेर दिखाई दी, वह उस पर बैठ कर सुस्ताने लगा। उसे वह परिवेश कुछ जाना-बूझा-सा लग रहा था। नीचे देखने पर लगा कि शायद कोई धार्मिक अनुष्ठान हो रहा है। उसे यह देखकर सुखद अनुभूति हुई कि मानव समाज में अभी भी धरम-करम के प्रति आस्था है।

थोड़ी देर बाद पंडितों की टोली का मंत्रोच्चार आरंभ हुआ। साथ ही उस घर से उठती पकवानों की सुगंध से उसकी भूख और बढ़ती जा रही थी। उसका ध्यान पंडितों के उच्चारण की ओर गया। किसी का श्राद्ध हो रहा था। आखिर अनुभव भी तो कोई चीज़ है! इस प्रकार के अनुष्ठान से उसका गहरा संबंध जो था। उसने वहाँँ अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना उचित समझा और कर्कश ध्यानाकर्षण प्रस्ताव से वह प्रांगण गूँज उठा-”काँव-काँव।“ नीचे खड़े लोगों का ध्यान उसकी ओर गया। सभी को जैसे मनचाही मुराद मिल गई। सबके चेहरे पर अनुष्ठान की सफलता के भाव चमक उठे।

तभी एक आवाज़ उभरी-ले आओ भाई, कागुर। एक व्यक्ति जिसका सिर मुड़ा हुआ था, भीतर से बाहर आया कागुर की थाली लेकर। उस सिर मुड़े व्यक्ति ने भोजन को आसमान की ओर, उसके पास उछाल दिया। अब छत पर सिर्फ भोजन और वह था। भूख से व्याकुल कौए ने झपट के पास पड़ी पूड़ी का एक टुकड़ा चोंच में उठा लिया। तभी उसका ध्यान उस सिर मुडे़ व्यक्ति की ओर गया। पहली दृष्टि में सिर मुड़ा होने के कारण वह उसे पहचान न सका था।

अब आँखें गड़ाकर देखने पर वह उसे पहचान गया था। वह और कोई नहीं बल्कि उसका इकलौता बेटा था। कुछ याद कर उसके आँसू टपक पड़े, क्योंकि यह वही बेटा था, जो कभी समय पर उसे भोजन न देता था। यह वही बेटा था, जिसने उसे समय-समय पर उपेक्षित और प्रताड़ित किया था। यह वही बेटा था,जो उसकी आवश्यकतओं की ओर से सदा उदासीन और लापरवाह रहता था। इसी उपेक्षा और भूख से त्रस्त होकर एक दिन उसने बाहर की झोपड़ी में दम तोड़ दिया था। कौए ने चोंच में दबी पूड़ी छोड़ दी और फिर उड़ गया एक अनजान दिषा की ओर।

शरद सुनेरी 

One thought on “भूखा कौआ

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन
    श्राद्ध करने का दिखावा बहुत करते हैं

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