कविता

अंतिम श्राद्ध

आज अंतिम दिन पितृपक्ष का कल से नवरात्र शुरू
श्राद्ध = श्रद्धा से दान जीवित अपनों को
जान में जान हो
जाने में राह आसान हो
जान लें जाना कहाँ है
जाने से पहले
आत्मतृप्ति के बाद आत्मा तृप्ति की जरूरत नहीं होती
तीन में कि तेरह में
एक बार चाची (पड़ोसन) से बातचीत के दौरान पता चला इसका सही सही अर्थ
चाची बताई कि
मिथिला में बेटियां तीन दिन में अपने माता पिता का श्राद्ध करती हैं
और बेटे तेरह दिन में
मिथिला में बेटियों का कन्यादान तिल विहीन किया जाता है
इसलिए तिल भर सम्बन्ध या यूँ कहें दायित्व निभाने की जिम्मेदारी मिल जाती है
वहीं छपरा जिला में बेटियां ना तीन में ना तेरह में होती हैं
लेकिन
बेटे बहुत लायक होते हैं तो बेटियां चैन से रहती हैं

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “अंतिम श्राद्ध

  • यह रीती रिवाज़ भी एक गोरख धंदा है ,और कुछ नहीं .

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      बिलकुल सच कहा आपने
      शुक्रिया

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