गीतिका/ग़ज़ल

जो खुद है बेवफ़ा

हमारे आशियानों में अपना घर रखेंगे,
सच में वो आसमानों में पर रखेंगे?

रख के मेरे कदमों के नीचे काँटे
वो मेरे कंधे पे अपना सर रखेंगे

कर के लहूलुहान मेरे जज़्बातों को
अपने ही हाथों उसे अब धर रखेंगे

शायद मुकर जाए वो अपने इरादे से
हम अपनी आँखें अश्कों से तर रखेंगे

इधर कुआँ है तो उधर है खाई
अपनी वफायें हम किधर रखेंगे?

तुम अपने पैरों को बाँधकर रक्खो
हम तुम्हारे आगे लम्बा सफर रखेंगे

जो खुद ही गुरु हो बेवफाओं का
वो क्या वफ़ा हमसे कर रखेंगे

— अखिलेश पाण्डेय

अखिलेश पाण्डेय

नाम - अखिलेश पाण्डेय, मैं जिला गोपालगंज (बिहार) में स्थित एक छोटे से गांव मलपुरा का निवासी हु , मेरा जन्म (23/04/1993) पच्छिम बंगाल के नार्थ चोबीस परगना जिले के जगतदल में हुआ. मैंने अपनी पढाई वही से पूरी की. मोबाइल नंबर - 8468867248 ईमेल आईडी [email protected] [email protected] Website -http://pandeyjishyari.weebly.com/blog/1

2 thoughts on “जो खुद है बेवफ़ा

  • विजय कुमार सिंघल

    मैंने पंक्तियों को बराबर करने की कोशिश की है।

  • विजय कुमार सिंघल

    इसकी पंक्तियाँ छोटी बड़ी हो गयी हैं। ग़ज़ल में सबकी लम्बाई समान होनी चाहिए।

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