साधना है….
आज मुझसे मेरा ही सामना है
इसलिए मन थोडा अनमना है
हर झगड़े की यही है एक जड़
सभी को एक दूसरे से घृणा है
इस हार को भी तुम जीत मानो
दुश्मनों से भला क्या हारना है
खुद की नजरों में जो उठ न सके
ऐसे इंसान को क्या मारना है
जान देकर डूब जाने को सतह तक
आज उसको लोग कहते साधना है।
— अखिलेश पाण्डेय
अच्छी ग़ज़ल !
अनमना ,हारना ,मारना ,साधना के साथ नफरत तुकबन्दी सही है क्या ?
अब मैंने क़ाफ़िया ठीक कर दिया है। ये नये रचनाकार हैं। परिपक्वता की कमी है।