गीत/नवगीत

अकथ्य मेरी वेदना

प्राण पंछी है विकल, असह्य मेरी वेदना
मौन मुखरित है प्रिये, अकथ्य मेरी वेदना

नीर नैनों में भरे मैं,समुद्र तट की ओर आता
जलधि का घनघोर गर्जन, तन में कंपन सा उठाता
वेग से बहता प्रभंजन, केश पट मेरे उड़ाता
निष्कंप अग्नि सी अविचलित, स्थिर है मेरी वेदना
मौन मुखरित है प्रिये, अकथ्य मेरी वेदना

ज्ञात है आनंद पीड़ा का तो फिर क्या भय हमें
अब नहीं है भीत प्राणों की ये तुम कह दो उन्हें
शीश हाथों में लिए आ जाऊँ मिलने को तुम्हें
करबद्ध होकर पर नहीं आएगी मेरी वेदना
मौन मुखरित है प्रिये, अकथ्य मेरी वेदना

मेरी इस जीवन धरा को दुखों का क्यों व्योम घेरे
क्षितिज पर मिल से गए विलोम और अनुलोम मेरे
अंतस्थल के भाव बदले सिहर उठे सब रोम मेरे
अवरूद्ध मेरे कंठस्थल में जैसे है मेरी वेदना
मौन मुखरित है प्रिये, अकथ्य मेरी वेदना

शब्द तो निर्जीव, लिख डाले थे मैंने एक क्षण में
पीड़ा का विस्तार किन्तु अस्तित्व के प्रत्येक कण में
तुम चुरा कर ले गए वो गीत, दोहे,  छंद मेरे
किस तरह परन्तु चुरा पाओगे मेरी वेदना
मौन मुखरित है प्रिये, अकथ्य मेरी वेदना

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

One thought on “अकथ्य मेरी वेदना

  • विभा रानी श्रीवास्तव

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