कहानी

कौन सा घर अपना

काफी देर से मोबाइल रिंग कर रहा था जल्दी से काम छोड़कर मैंने जैसे ही मोवाइल उठाया उधर से नेहा की कुछ घबराई हुई आवाज  आई…. किरण तुम फ्री हो? मेरे हाँ कहने पर कुछ देर सोंचकर कहती है- क्या करें किरण देखो ना मेघा का हसबैंड आया हुआ है। (मेघा नेहा की बहन जिसका विवाह हुए करीब छः महीने हुआ था। ) मैं सोंच में पड़ गई कि आखिर अपने बहनोई के आने से नेहा खुश होने के बजाय परेशान क्यों है? वो बोल रही थी कि यशस्वी ( मेघा का पति ) कह रहे हैं कि अपने माँ पापा को समझाकर मेघा को मायके में ही बुलवा लीजिए.. बहुत जिद्दी है मेघा.. मेरे परिवार में किसी के साथ नहीं बनता है उसकी। छोटी छोटी चीजों के लिए भी सभी से झगड़ा करती रहती है। सबसे इतना व्यवहार खराब कर ली है कि कोई उसे पानी देने वाला भी नहीं है….. आदि आदि। कई तरह की उलाहने दे  रहा था….!

मैंने कहा कि फिर बोल दो अपने माँ पापा से बुलाने के लिए, क्या दिक्कत है बुलाने में!

नेहा कहने लगी कि मेघा मायके में आना ही नहीं चाहती है! यशस्वी तो बोल रहे थे कि मेघा को कुछ भी नहीं बताइयेगा नहीं तो वो आत्महत्या कर लेगी.. कई बार जलने की कोशिश कर चुकी है.. चूंकि प्रेग्नेंट है तो उसे परेशानी नहीं हो। इसलिए मैं डॉक्टर से बेडरेस्ट के लिए लिखवा लूंगा और पूरा खर्च भी मैं ही दूंगा। प्लीज उसे कुछ भी नहीं बताइयेगा कैसे भी करके बुलवा लीजियेगा!

मैं सोंच में पड़ गई कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है चूंकि नेहा मेरी सहेली के साथ साथ मायके की सबसे करीबी पड़ोसी की बेटी भी थी। इस लिए मैं नेहा के पूरे परिवार से अच्छी तरह से परिचित थी! विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेघा ऐसा कर भी सकती है। आखिर विश्वास भी कैसे करती? अभी  कुछ ही दिन पहले मैं जब बलिया  (मायके) गई थी मेघा पहली बार ससुराल से आई थी। उसके साथ साथ उसकी जेठानी की बेटियां भी अपना बैग तथा स्कूल बैग लेकर आई थी। कह रही थी कि मैं चाची के साथ ही रहूँगी, नहीं जाऊँगी मम्मी के पास….चाची बहुत अच्छी है।

ये बात मुझे यह सोंचने पर विवश कर रही थी कि जब मेघा इतनी बुरी होती तो जेठानी की बेटियां उसके साथ रहना क्यों चाहती? दूसरी बात कि जब मेघा मायके में रहती थी तो उसके ससुराल वाले हमेशा ही मिलने आते थे। उसे तरह तरह का उपहार लाते थे। कभी महंगे कपड़े तो कभी गहने.. आदि आदि! मैंने नेहा से कहा कि अभी तुम आराम करो। यशस्वी को भी समझाओ और तुम्हारी बहन से भी तुम्हारा खून का रिश्ता है। आखिर कितनी गलत हो सकती है वह ? कम से कम अपने खून पर तो विश्वास करो! तब नेहा ने ‘ठीक ही कह रही हो’ ऐसा कहकर मोवाइल काट दिया….!

करीब एक महीने बाद मैं भी होली में बलिया गई हुई थी। संयोग से होली मिलने यशस्वी और मेघा भी आए हुए थे। मैं भी उनसे मिलने उनके घर गई। मेघा अन्दर थी और यशस्वी नेहा और मेघा के मम्मी पापा के साथ बैठकर धीरे धीरे कुछ बातें कर रहे थे इस प्रकार जैसे कि कोई चोर चोरी करने का योजना बना रहा हो।. मैने थोड़ा ध्यान दिया तो सिर्फ यशस्वी के मुंह से मेघा की शिकायत सुना ! सुनकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं पूछ ही बैठी- आखिर मेघा ऐसा करती ही क्यों है कोई तो वजह होगी?

तब यशस्वी अपने चेहरे से कुछ नाराजगी का भाव छुपाते हुवे बोले – ये सब मेरी भाभी और मेघा के बीच का मामला है। इन दोनो लोगों की आपस में नहीं बनती इसलिए मैं चाहता हूँ कि मेघा यहीं रहे फिर गर्मी की छुट्टियों में जब भाभी अपने मायके जाएंगी तो मैं मेघा को फिर से बुला लूंगा! फिर तो मुझे और भी शक होने लगा कि आखिर ऐसे कैसे चलेगा और सिर्फ इस वजह से कोई अपनी पत्नी को मायके क्यों भेजना चाहेगा! तभी मेघा के कमरे में प्रवेश होता है और पूरा वातावरण शान्त जैसे चोरी करते समय पुलिस अचानक पहुंच गई हो।

यशस्वी मेघा को छोड़कर चले गए यह कहकर कि कुछ देर में आता हूँ। मेघा परेशान हो गई, जो उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रहा था। फिर भी मुस्कुराने का अभिनय कर रही थी। रात करीब दस बज गया और उसका पति नहीं आया, तो वह अपने पति के मोबाइल फोन पर कॉल करने लगी किन्तु यशस्वी का मोबाइल स्विचऑफ था। फिर तो मेघा और भी परेशान हो गई। मेघा का ससुराल भी उसके मायके से करीब दो किलोमीटर दूरी पर ही था। मेघा ने मुझसे छोड़ने के लिए आग्रह किया। मैंने भी उसे परेशान देखकर अपने ड्राइवर को उसके ससुराल में छोड़ने के लिए बोल कर अपने घर वापस चली आई..!

रात करीब १२ बजे अचानक हल्ला सुनकर मैं भी बाहर निकली, तो मेघा को देखकर मेरे होशोहवास उड़ गए! चेहरे पर थप्पड़ के कई निशान… आँखों के नीचे से खून टपक रहा था। खुदा का खैर था कि आँखें बच गई थी। जगह जगह पर कपड़े फटे हुए और धूल से सने हुए थे जिससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि उसे बेरहमी से पिटाई कर के घसीटा गया था! डर और शर्म से उसके होठ सिल गए थे… सिर्फ उसकी आँखें उसका हाल बयां कर रही थीं …! और मैं मन ही मन दुखी मन से उस पहेली को सुलझाने में लग गई थी…..!

उस रात मैं भी नेहा के घर ही रुक गई। मेघा से सच उगलवाने में कामयाब हो रही थी। उसके एक एक शब्द के साथ साथ पिघलती वेदना आँखों के रास्ते अश्रुबनकर निकल रही थी।

मेरे पूछने पर मेघा कहने लगी जब मैं ससुराल पहुंची, तो सभी की  निगाहें मुझे ही घूर रही थी। मैं सीधे अपने बेडरूम में पहुंची जो अंदर से दरवाजा बंद था। मेरे पास दूसरी चाबी थी और मैंने दरवाजा खोलकर अंदर प्रवेश किया, तो अंदर यशस्वी और उसकी भाभी को एक साथ…. कहते कहते वो रुक गई  किन्तु उसकी भाव भंगिमाओं से मैं समझ गई… जो वो कहना चाहती थी… उसके चेहरे पर यशस्वी और उसकी भाभी के लिए घृणा का भाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था।

वो अपना आँसू पोछते हुए फिर कहने लगी। मेरे जोर से चिल्लाने पर मुझे यशस्वी बेरहमी से पीटने लगे….और बोलने लगे कि यदि तुम अपना जुबान खोलोगी तो मैं तुम्हारे साथ साथ तुम्हारे पूरे परिवार को जान से मार दूंगा! तुम्हें और तुम्हारे बहन को बदनाम कर दूंगा… जिससे उसकी शादी नहीं हो पाएगी आदि आदि और उनकी भाभी ने बगल में रखे हुए ताला से मेरी आँखों पर जोर से प्रहार किया कि तुम्हारी आँखों को ही मैं फोड़ दूंगी। फिर दोनों ने मिलकर मुझे घसीटते हुए घर से बाहर कर दिया! मुहल्ले में सभी से कह दिया था उन लोगों ने कि मुझे पागलपन का दौरा पड़ता है! साबित करने के लिए कभी उपर से गमला फेंककर तो कभी बर्तन फेंककर कह दिया जाता था कि मैने ही फेंका है!

अब मुझे यशस्वी का सारा फरेब समझ में आने लगा था कि क्यों वो मेघा को मायके में भेजने के लिए इतना फरेब कर रहा था। सबसे गुस्सा तो नेहा और उसके मम्मी पापा पर आ रहा था कि एक फरेबी के कहने पर अपनी बहन बेटी पर अविश्वास कैसे कर लिया? क्यों नहीं पढ़ पाई वो अपनी बहन बेटी के आँखों में छुपे दर्द को? क्यों बेटी विदा करते समय दे दिया उसे दीक्षा कि दोनो घर का इज्जत तुम्हारे हांथ में है! चाहे उस खोखली इज्जत के लिए कितना ही कष्ट झेलना क्यों न पड़े बेटियों को ..!

शायद इसी झूठी इज्जत बचाने के चक्कर में पिस रही थी मेघा, घुट रही थी अपने आप में। बेचारी कहती भी किससे बेटियों को तो शुरू से ही पराया धन कहकर उसे दान कर दिया जाता है और दान दी हुई वस्तु का अधिकार ही कहां होता है? कौन सा घर अपना है बेटियों का… बेचारी समझ ही कहां पाती हैं!

 

*किरण सिंह

किरण सिंह जन्मस्थान - ग्राम - मझौंवा , जिला- बलिया ( उत्तर प्रदेश) जन्मतिथि 28- 12 - 1967 शिक्षा - स्नातक - गुलाब देवी महिला महाविद्यालय, बलिया (उत्तर प्रदेश) संगीत प्रभाकर ( सितार ) प्रकाशित पुस्तकें - 20 बाल साहित्य - श्रीराम कथामृतम् (खण्ड काव्य) , गोलू-मोलू (काव्य संग्रह) , अक्कड़ बक्कड़ बाॅम्बे बो (बाल गीत संग्रह) , " श्री कृष्ण कथामृतम्" ( बाल खण्ड काव्य ) "सुनो कहानी नई - पुरानी" ( बाल कहानी संग्रह ) पिंकी का सपना ( बाल कविता संग्रह ) काव्य कृतियां - मुखरित संवेदनाएँ (काव्य संग्रह) , प्रीत की पाती (छन्द संग्रह) , अन्तः के स्वर (दोहा संग्रह) , अन्तर्ध्वनि (कुण्डलिया संग्रह) , जीवन की लय (गीत - नवगीत संग्रह) , हाँ इश्क है (ग़ज़ल संग्रह) , शगुन के स्वर (विवाह गीत संग्रह) , बिहार छन्द काव्य रागिनी ( दोहा और चौपाई छंद में बिहार की गौरवगाथा ) ।"लय की लहरों पर" ( मुक्तक संग्रह) कहानी संग्रह - प्रेम और इज्जत, रहस्य , पूर्वा लघुकथा संग्रह - बातों-बातों में सम्पादन - "दूसरी पारी" (आत्मकथ्यात्मक संस्मरण संग्रह) , शीघ्र प्रकाश्य - "फेयरवेल" ( उपन्यास), श्री गणेश कथामृतम् ( बाल खण्ड काव्य ) "साहित्य की एक किरण" - ( मुकेश कुमार सिन्हा जी द्वारा किरण सिंह की कृतियों का समीक्षात्मक अवलोकन ) साझा संकलन - 25 से अधिक सम्मान - सुभद्रा कुमारी चौहान महिला बाल साहित्य सम्मान ( उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ 2019 ), सूर पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान 2020) , नागरी बाल साहित्य सम्मान बलिया (20 20) राम वृक्ष बेनीपुरी सम्मान ( बाल साहित्य शोध संस्थान बरनौली दरभंगा 2020) ज्ञान सिंह आर्य साहित्य सम्मान ( बाल कल्याण एवम् बाल साहित्य शोध केंद्र भोपाल द्वारा 2024 ) माधव प्रसाद नागला स्मृति बाल साहित्य सम्मान ( बाल पत्रिका बाल वाटिका द्वारा 2024 ) बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से साहित्य सेवी सम्मान ( 2019) तथा साहित्य चूड़ामणि सम्मान (2021) , वुमेन अचीवमेंट अवार्ड ( साहित्य क्षेत्र में दैनिक जागरण पटना द्वारा 2022) जय विजय रचनाकर सम्मान ( 2024 ) आचार्य फजलूर रहमान हाशमी स्मृति-सम्मान ( 2024 ) सक्रियता - देश के प्रतिनिधि पत्र - पत्रिकाओं में लगातार रचनाओं का प्रकाशन तथा आकाशवाणी एवम् दूरदर्शन से रचनाओं , साहित्यिक वार्ता तथा साक्षात्कार का प्रसारण। विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर अतिथि के तौर पर उद्बोधन तथा नवोदित रचनाकारों को दिशा-निर्देश [email protected]