खग मन
!!!!!!! खग मन !!!!!!!
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चंचल यह खग मन
कागज की कस्ती सी
करता स्मृति में विचरण
छल छल करती नदी सी
बनाते थे बालू से घर
बूनते थे सुन्दर स्वप्न
करके आँखें अपनी बन्द
भविष्य निधि में भरते थे रत्न
कहाँ गये वो पल
प्रश्न उठता है रह रह कर
खुश हो जाता है मन
अतीत का चित्र देख सुन्दर
अब यह जीवन पथ का
लक्ष्य जाएगा कहाँ
पता नहीं मुझे है
घूमती हू यहाँ वहाँ
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© copyright @ Kiran singh
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