मुक्तक
अजब की महक है यारा तेरा विश्वास करना भी
गजब की चहक है यारा मेरा अहसास करना भी
नज़र मे क्या शराफ़त है गुले गुलजार बनकर के,
सफ़र रौनक बताती है दिले परिहास करना भी
क़लम की नोक से पैनी नहीं तलवार होती है
वतन के प्रेम की मैना यही अखवार होती है
सनम के आँख के आँसू विभावरि मे उमड़ते हैं
नहीं कोई दवा इसकी यही पतवार होती है
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’