पारंगामिता
जब पारंगामिता ,
परम्परागत होती है।
तब परिहारिक,
अपने कला की,
परिमिता को पार कर जाता है।
पार्थिव का आकलन करके,
उसमें पार्थक्य तैयार करता है।
प्रतियोगिताओं के होड़ में,
सभी को पारना है।
तथा अगोचरी की अगोदार,
अपने परिभावना के बल पर,
परिनिवृत हो जाता है।
स्वयं परिपृच्छा के भरोसे
परिभिन्न को परिभाष्य कर देता है।
@रमेश कुमार सिंह /१७-०८-२०१५
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शब्दार्थ –
पारंगामिता->पार जाने की सामर्थ्य
परिहारिक->हार तैयार करने वाला
परिमिता->सीमा,हद
पार्थिव->पृथ्वी से उत्पन्न वस्तुओं से बना हुआ
पार्थक्य->पृथक, अलगाव
अगोचरी->मन को उत्पन्न करने की साधना।
अगोदार->देखभाल करने पर
परिभावना->विचार चिन्तन
परिनिवृत->कार्य मुक्त
परिपृच्छा->जिज्ञासा
परिभिन्न->अलग-अलग,टुट-टुट
परिभाष्य->परिभाषित कर देता है।
पारना->पछाड़ना।
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बेजोड़ शब्द सब
आपका आशीर्वाद!!