मुक्तक/दोहा

मेला है नवरात्रि का/दोहा मुक्तक

मेला है नवरात्रि का, फैला परम प्रकाश।

आलोकित जीवन हुआ, कटा तमस का पाश।
माँ प्रतिमा सँग घट सजे, चला जागरण दौर
देवी की जयकार से, गूँज उठा आकाश।

आस्तिकता, विश्वास में, भारत देश कमाल।
गरबा उत्सव की मची, चारों ओर धमाल।
शक्तिमान, अपराजिता, माँ दुर्गा को पूज
अर्पित कर भाव्यांजली, जन-जन हुआ निहाल।

आता है जब क्वार का, शुक्ल पक्ष हर बार।
दुर्गा मातु विराजतीं, घर-घर मय शृंगार।
जुटते पूजा पाठ में, भेद भूल सब लोग
बड़े गर्व की बात है, भारत इक परिवार।

भक्ति-पूर्ण माहौल का, जब होता निर्माण।
दुष्ट-दुष्टतम मनस भी, बने शुद्धतम प्राण।
जीवन भर हों पाप में, रत चाहे ये लोग
पर देवी से माँगते, मृत्यु-बाद निर्वाण।

रमता मन नवरात में, त्याग, भोग-जल-अन्न।
देवी के आह्वान से, होते सभी प्रसन्न।
मेले, गरबे, झाँकियाँ, सजते सारी रात।
इस विधि होता पर्व ये, नौ दिन में सम्पन्न।

दनुज नहीं तुम मनुज हो, मत भूलो इंसान।
नारी से ही बंधुवर, है आबाद जहान।
देवि-शक्ति माँ रूप है, नारी भव का सार।
मान बढ़ाओ देश का, कर नारी का मान।

 

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]