मेला है नवरात्रि का/दोहा मुक्तक
मेला है नवरात्रि का, फैला परम प्रकाश।
आलोकित जीवन हुआ, कटा तमस का पाश।
माँ प्रतिमा सँग घट सजे, चला जागरण दौर
देवी की जयकार से, गूँज उठा आकाश।
आस्तिकता, विश्वास में, भारत देश कमाल।
गरबा उत्सव की मची, चारों ओर धमाल।
शक्तिमान, अपराजिता, माँ दुर्गा को पूज
अर्पित कर भाव्यांजली, जन-जन हुआ निहाल।
आता है जब क्वार का, शुक्ल पक्ष हर बार।
दुर्गा मातु विराजतीं, घर-घर मय शृंगार।
जुटते पूजा पाठ में, भेद भूल सब लोग
बड़े गर्व की बात है, भारत इक परिवार।
भक्ति-पूर्ण माहौल का, जब होता निर्माण।
दुष्ट-दुष्टतम मनस भी, बने शुद्धतम प्राण।
जीवन भर हों पाप में, रत चाहे ये लोग
पर देवी से माँगते, मृत्यु-बाद निर्वाण।
रमता मन नवरात में, त्याग, भोग-जल-अन्न।
देवी के आह्वान से, होते सभी प्रसन्न।
मेले, गरबे, झाँकियाँ, सजते सारी रात।
इस विधि होता पर्व ये, नौ दिन में सम्पन्न।
दनुज नहीं तुम मनुज हो, मत भूलो इंसान।
नारी से ही बंधुवर, है आबाद जहान।
देवि-शक्ति माँ रूप है, नारी भव का सार।
मान बढ़ाओ देश का, कर नारी का मान।
-कल्पना रामानी