कविता

ये खामोंशियाँ एक दिन गुनगुनाएंगी जरूर…

ये खामोंशियाँ एक दिन गुनगुनाएंगी जरूर
दिल में दबी हर बात, सुनाएंगी जरूर
इन्हें इन्तजार है, किसी के कदमों की आहट का
वो आहट एक दिन, इन कानों में आयेगी जरूर॥

ये जो टूट कर शाख से, गिरी हैं पत्तियां
यहां वहां हर ओर, बिखरी हैं पत्तियां।
कभी करती थी अठखेलियां, हवा की तान पर
आज हवा की चाल में ही, घिरीं है पत्तियां॥

बदलती है किस्मत, रास्ते के पत्थरों की भी
हो जाती है काया पलट, उजडे हुऐ घरों की भी।
वफा को मिलता जरूर है, एक ना एक दिन वफा का ईनाम
इनायत हो ही जाती है, पत्थर दिल दिलवरों की भी॥

आज पतझर है तो क्या हुआ, मुझे यकीं है बहारें आयेगीं जरूर
उगेगीं नव कोपलें, कलिया मुस्कायेगीं जरूर।
इन फिजाओं में, फिर खुशियां मधुरस घोलेगीं
प्रीत की कोयल अपना गीत, सुनायेगी जरूर॥

ये खामोंशियाँ एक दिन गुनगुनाएंगी जरूर
दिल में दबी हर बात, सुनाएंगी जरूर…

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.