तक़दीर
तेरी तस्वीर
क्यों ज़र्रे ज़र्रे में नज़र आती है
कितनी दूर है तू
फिर भी क्यों पास नज़र आती है
यूँ तो सब कुछ था मेरी तक़दीर में
इक् तेरे सिवा
और मुझको तो तुझमे ही
मेरी तक़दीर नज़र आती है
माना की पा न सका
तुझे इस जन्म में
पर मुझको तो
तू इसी जन्म में
सिर्फ मेरी ही नज़र आती है
माना की तूने जो कुछ बोला
मेरी ख़ुशी के लिए बोला
हर लम्हा अपना
मेरी ख़ुशी के लिए खोला
खुद ने न कभी चाहा
न कभी चाहोगी मुझको
शायद इसीलिए तुम
एक पल में अपनी
और दूजे ही पल
बेगानी नज़र आती हो
बेगानी नज़र आती हो
सुंदर
बहुत खूब ,वाह वाह .