मानवता हो गयी मरणासन्न
दिल्ली में हुए शर्मनाक कांड पर दिल में उत्पन्न हुए आक्रोश से निकली कुछ पंक्तियाँ :-
मानवता हो गई मरणासन्न,
लोट रही अंगारों पे,
घूम रहे हैं भूखे कुत्ते,
गलियों में, बाज़ारों में,
मेरे देश में एक तरफ,
दुर्गा को पूजा जाता है,
और यहीं पर औरत की,
इज्जत को लूटा जाता है,
जहां भी देखो वहीं भेड़िए,
घात लगाए बैठे हैं,
छोटी-छोटी बच्चियों पर भी,
नज़र गड़ाए बैठे हैं,
कहीं सहारा नेताओं का,
कहीं सहारा वर्दी का,
मर्दों वाला काम नहीं है,
काम है ये नामर्दी का,
कोई भी गैरतमंद जिसने,
माँ का दूध पिया होगा,
ख्वाब में भी ना उसने ऐसा,
गंदा काम किया होगा,
जब तक ये बलात्कारी,
अपने देश में जिंदा हैं,
अपनी भारत माता से हम,
सब के सब शर्मिंदा हैं,
इनके खून से लाल करेंगे,
रस्तों और गलियारों को,
चुन-चुनकर मारेंगे इन सब,
गीदड़ों और सियारों को,
जिसने उसको जन्म दिया है,
वो भी तो इक नारी है,
फिर औरत पर आँख बिगाड़े,
कैसा व्यभिचारी है,
लेकिन अब ना और सहेंगे,
इन ज़ालिम हैवानों को,
नंगा करके टांगेंगे हम,
चौक पे इन शैतानों को,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा