ग़ज़ल
कभी मिलने न आते हैं, बड़ी तकलीफ़ होती है,
वो वादा भूल जाते हैं, बड़ी तकलीफ़ होती है।
लिये रहते है जो गर्द-आलूद चेहरे पर,
वहीँ बातें बनाते हैं, बड़ी तकलीफ़ होती है।
जिन्हें अमृत परोसा है, मुहब्बत का सदा हमने,
हमें विष वो पिलाते हैं, बड़ी तकलीफ़ होती है।
ख़ुशी के वास्ते जिनकी, सदा हम धूप ढोते हैं,
वहीँ हमको रुलाते हैं, बड़ी तकलीफ़ होती है।
जिन्हें इस इश्क़ की कीमत नहीं मालूम ‘शुभदा’ वो,
यहां बातें बनाते हैं, बड़ी तकलीफ़ होती है।
— शुभदा बाजपेई