धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

दीपावली पर विशेष लेख

ज्योति पर्व ‘दीवाली’ भारत का एक प्रमुख उत्सव है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ से प्रेरित ‘बहुजन सुखाय’ की आत्म ज्योति प्रज्वलित करने वाले इस पर्व को प्रायः सभी धर्मों के लोग अपनी-अपनी मान्यतानुसार राष्ट्रीय स्तर पर मनाते हैं। इसके मनाए जाने के पीछे सांस्कृतिक दृष्टिकोण के अलावा धार्मिक भावनाएं भी प्रमुख हैं। कुछ लोग भगवान श्रीराम की रावण पर विजय के बाद अयोध्या वापसी पर मनाये गये उत्सव की मान्यता को अधिक महत्व देते हैं तो कुछ लोग इस दिन माता लक्ष्मी की समुद्र मन्थन से उत्पत्ति को प्रधानता देते हैं और साथ में विद्या बुद्धि के देवता श्री गणेश की पूजा भी करते हैं। इसके अतिरिक्त इस दिन सरस्वती, भगवान बुद्ध, स्वामी दयानन्द सरस्वती तथा तन्त्र-मन्त्र व शस्त्र
की पूजा को भी महत्व दिया जाता है। भारत में मूलतः यह पर्व पांच दिनों का होता है जो धार्मिक कर्मकाण्ड, प्रकाश उत्सव एवं मिठाइयों के त्योहार के साथ मनाया जाता है।

जैसे-जैसे भारतीय मूल के निवासी दुनिया के अन्यत्र भूखण्डों को स्थानान्तरित हुए अथवा जो विदेशी यहाँ की शाश्वत संस्कृति के संपर्क में आये, वे जाते समय अपने साथ यहाँ के धर्म व संस्कृति को भी साथ ले गये। जिसका पूर्णकालिक, आंशिक अथवा परिमार्जित रूप आज भी विदेशों में देखने को मिलता है। हमारा बहुउद्देशीय ज्योति पर्व दीपावली भी इससे अछूता नहीं रहा। विश्व के प्रमुख देशों में भारतीय ज्योति पर्व ‘दीपावली’ के कैसे-कैसे रूप देखने को मिलते हैं, यह जानना अपने आप में काफी आनन्ददायक है।

पिछले वर्षों में अमेरिका में भारतवंशियों द्वारा भव्य पैमाने पर दीपावली का  आयोजन किये जाने की चर्चा सारी दुनिया में होती रही है। वहाँ इस पर्व को  भारतवंशियों के अलावा अन्य जातियों एवं धर्मो के लोग भी सौहार्दपूर्वक  मिलजुलकर भव्यता के साथ मनाने लगे हैं। और इसका दायरा बढ़ते-बढ़ते  व्हाइट हाउस तक जा पहँचा है। स्वयं अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने  अपने परिवार और अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ धूम-धाम से मनाने की  अनुमति देकर दीपावली जैसे पर्व की वैश्विक महत्ता को स्वीकार करने से सारी  दुनिया के लोगों में बहुत ही अच्छा संदेश गया है और लोगों में इस पर्व के प्रति  जागरूकता और उत्सुकता पैदा हो गयी है। आइये, हम ये जानने की कोशिश  करते हैं कि इस पर्व से मिलते-जुलते कौन-कौन से त्योहार किन-किन देशो  में किस प्रकार से मनाये जाते हैं।

हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका में यह पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है। जैसा  कि सभी जानते हैं कि भारत व श्रीलंका के पड़ोसी संबन्ध प्राचीनकाल से ही  रहे हैं और उनके बीच धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का आदान-प्रदान होता रहा है। इसी कारण श्रीलंका में आज भी दीपावाली तथा कुछ अन्य त्यौहार  कमोबेश भारतीय परम्परा से ही मनाये जाते हैं। ज्योति पर्व पर श्री लंका निवासी  अपने लिपे-पुते ,साफ-सुथरे घरों को दीपमालिकाओं से सजाते हैं। आतिशबाजी के आकर्षक कार्यक्रम होते हैं। विभिन्न प्रकार की मिठाइयां, खील-बताशे तथा
खंाड से बने पशु-पक्षियों की आकृति वाले खिलौने वहाँ भी प्रिय हैं। इस दिन  ‘मिसिरी’ खाना शुभ माना जाता है। ज्योति पर्व पर श्रीलंका में राष्ट्रीय अवकाश  भी रहता है।

चीन में यह पर्व ‘नई महुआ’ के नाम से मनाया ंजाता है। वहाँ भारतीय छाप  देखने को मिलती है। ज्योति पर्व की तैयारी महीनों पूर्व से प्रारम्भ हो जाती है।  मकानों को साफ करके लिपाइ-पुताई करते हैं। फिर विभिन्न सामानों व रंगीन  कागज की आकर्षक कंदीलों से उनकी सजावट करते हैं। चीन के व्यापारी भी  धन-लक्ष्मी के अस्तिंत्व को स्वीकार करते हुए इसी दिन से अपने नये बही खातों  की शुरूआत करते हैं।

वर्मा मे इस पर्व को ‘लैगीज’ के नाम से नवम्बर माह में मनाते हैं साफ-सुथरे  घरों को विभिन्न सजावट कें सामानों तथा जगमगाती प्रकाश व्यवयस्था से सजाते  हैं। वे दरवाजे तथा आँगन मण्डप आदि में तोरण. बन्दन वार का कि इसी दिन  भगवान बुद्ध ने ज्ञान का प्रकाश पाने के बाद वट वृक्ष के चबूतरे से धरती पर  अवतार किया था। इसी कारण ज्योति पर्व पर भगवान बुद्ध की पूजा होती है।

फीजी में, जहाँ कि भारतीय मूल के निवासियों की अधिकता है वहाँ यह पर्व  काफी धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन वहाँ के निवासी इस अवसर पर लक्ष्मी  पूजन से अधिक महत्व श्रीराम की आयोध्या वापसी को देते है। इस अवसर पर  घरो की सजावट आदि कार्यो के अतिरिक्त रामलीला का भी भव्य आयोजन  किया जाता है। जिससे फिजीवासी बड़ी ही श्रद्धा व भक्ति पूर्वक देखते-सुनते है।  इस अवसर पर स्वामी दयानन्द सरस्वती के निर्वाण को भी महत्व दिया जाता  है।

थाईलैण्ड में इस प्रकार के पर्व को ‘क्रोचोग’ नाम से मनाते हैं। क्रोचोग केले के  पत्तों के कटे छोटे-छोटे टुकड़ों को कहते हैं, जिन पर थाईलैण्डवासी एक जलता  हुआ दीपक थोड़ी सी धूप और एक मुद्रा रखकर जल में प्रवाहित करते हैं। इस  अवसर पर घरों को रोशनी से सजाया जाता है।
मारीशस में रामायण को काफी महत्व दिया जाता है, इसलिए वहाँ पर श्रीराम की  आयोध्या वापसी की खुशियाँ मनाते हुए देशी घी के दीपक जलाये जाते हैं।  व्यापारी इस अवसर पर लक्ष्मी की भी पूजा करते हैं।

अधिकांश पूर्वी एशियाई देशों में यह ज्योति पर्व भारतीय परम्परा में ही मनाया  जाता है। इनमें रंग-बिरंगे कागज के कंदीलों से घरों की सजावट की जाती है।  तथा दीपक जलाये जाते हैं। मलेशिया में इस पर्व को राष्ट्रीय स्तर पर मनाते हैं।  दीपक जलाना, आतिश बाजी छुड़ाना तथा मिठाई आदि खाकर खुशी मनाने की  प्रथाएं हैं। मलाया में इस अवसर पर फानों पर्वत के एक भग्न मन्दिर में रखी  भगवान विष्णु और लक्ष्मी के प्रतिमाओं की पूजा होती है। जावा, सुमात्रा तथा  अन्य द्वीप समूहों में भी यह पर्व मनाया जाता है। कहीं-कहीं नाच गाने के भी  कार्यक्रम होते हे।

जापान में इस त्योहार को ‘तोरे नगाशी’ के नाम से मनाते हैं। यह तीन दिनो  तक चलता है। जापानवासियों की मान्यता है कि इस दिन उनके पूर्वज उन्हें सुखी  तथा समृद्ध देखने आते हैं। अतः उनके स्वागत घरों को साफ-सुथरा करके  प्रकाश व्यवस्था से जगमग कर देते हैं। मुख्य पर्व काफी धूमधाम से तीसरे दिन  मनाया जाता हैं। जिसे वे सुख समृिद्ध का पावन पर्व मानते हैं।

विश्व के सबसे बड़े देश सोवियत रूस में भी ज्योति पर्व मनाया जाता हैं। इस  अवसर पर क्रैमलिन चैक को बड़े परिश्रम व कलाकारी के साथ सजाया जाता  है। इस आकर्षक, मनोरम तथा जगमगाती हुई भव्य सजावट को देखने के लिए  भारी संख्या में विदेशी पर्यटक भी आते हैं। इसी बीच 7 नवम्बर को क्रैमलिन चौक में सेना के तीनों अंगो के आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्रों तथा जांबाज सैनिकों  के पराक्रम का भी प्रदर्शन भी किया जाता है।

इसके अतिरिक्त गुयाना (दक्षिण अमेरिका) में भी ज्योति पर्व राष्ट्रीय स्तर पर  मनाया जाता है। स्वीडन में इसे ‘लुसिया दिवस’ के नाम से जानते हैं।  यूनान में ज्योति पर्व सर्दियों के प्रारम्भ तथा ईरान में मार्च माह में मनाया जाता  है। मुस्लिम देशों का पर्व ‘शबेरात’ भी कुछ ऐसा ही है। सचमुच, यह भारतीयों के लिए काफी गर्व तथा प्रसन्नता की बात है।

तिब्बत में प्रकाशोत्सव बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति की स्मृति में मनाया जाता है। इस  दिन बौद्ध मन्दिरों को दीपमालाओं से सजाया जाता है। बुलगारिया मे ईस्टर के बाद सात दिन ‘प्रकाश के सप्ताह’ के रूप में मनाते हैं। विश्वास किया जाता है  कि ईसा को मृत्यु के बाद पुनः जीवित हो जाने पर सूर्य सात दिन तक  चमकता रहा था। इस सप्ताह को स्वेतलाना मदंेल्या कहते हैं। अमेरिकी लोग 4  जुलाई को अपने स्वाधीनता दिवस के उपलक्ष्य में आतिश्बाजी छोड़कर आकाश  को जगमगा देते हैं। प्रमुख भवनो में रोशनी की जाती हैं।

पेरिस में भी प्रकाश पर्व मनाया जाता है। यह पर्व ऐतिहासिक राज्याभिषेक की  स्मृति में मनाया जाता है। यहूदी लोग इन्नूकह नाम से प्रकाशोत्सव मनाते है। यह  यहूदी कैलेन्डर के नौवें पवित्र मास के 15 वें दिन मनाया जाता है। इस दिन  यहूदी मन्दिरों को सजाते हैं। वेस्ट इन्डीज में दीपावली राष्ट्रीय पर्व है। नेपाल में  दीपावली 5 दिनों तक मनायी जाती है। पहले दिन कौवों की, दूसरे दिन कुत्तो की, तीसरे दिन गाय की, चौथे दिन अन्य जानवरों की व पांचवें दिन भैया दूज  मनाई जाती है। जिसमे बहने भाई को रक्षा सूत्र बाँधकर सुरक्षा एवं विश्वास
बनाये रखने का वचन लेती हैं।

सचमुच यह जानना काफी रोमांचक एवं ज्ञान वर्धक है कि हमारी प्राचीन परम्परा  का यह ज्योति पर्व किसी न किसी रूप में सारी दुनिया मे मनाया जाता है। जो  विश्व के लोगो को असत्य पर सत्य की विजय, अंधेरे पर उजाले की विजय शोक  पर खुशियों की विजय और मानवता व भाई चारे की प्रेरणा व संदेश देता है।

अरविंद कुमार साहू

अरविन्द कुमार साहू

सह-संपादक, जय विजय