फेरी वाला
यह बात बटवारे से पहले की है | पेशावर शहर में जमा- जमाया दूर तक फैला व्यापार, आलिशान हवेली ,पांच भाई और एक बहन में सबसे छोटा बिल्लू माँ –बाप और भाई बहन के दुलार से फुले नहीं समाता था | कितना ख़ुशी ख़ुशी बीत रहा था बचपन | जब तक अचानक वो काली रात न आई की सब कुछ छोड़ कर पूरे परिवार को भारत आना पड़ा और देखते ही देखते ज़िन्दगी ही बदल गयी |
सदमे के कारण पहले माँ ने फिर पिता ने दुनिया छोड़ दी और यूँ हँसता खेलता परिवार दुखों में डूब गया |
अभी एक बटवारे की चोट कम न थी की दूसरा बटवारा आपसी रिश्तों का और जायदाद का हो गया और सभी भाई अपना हिस्सा ले अपने परिवार में लीन हो गए , बहन की शादी हो गयी और रह गया तन्हा बिल्लू का मासूम बचपन कराहता ,बिलखता जिसका दर्द किसी को दिखाई नहीं दिया |
कड़कती ठण्ड की मार ,भीषण गर्मी की तपन , भूख की कराह से झूझता मासूम बिल्लू जिस पर अपनों को भी कभी दया न आई | ये सितम कम न था की तेज बुखार ने इस कदर घेरा की एक टांग पोलियो से ग्रस्त हो गयी |
भाइयों ने जो भी थोडा बहुत हिस्सा बिल्लू का था वो भी उस की मासूमियत का फायदा उठा उस से ले लिया अब तो कुछ भी नहीं था बिल्लू के पास सिवाय दुःख ,दर्द और तकलीफ के | ऐसे में बहन को दिल भर आया और वो अपने छोटे भाई बिल्लू को दिल्ली ले आई | यहाँ भी ज़िन्दगी इतनी आसन नहीं थी की क्योंकि बहन का अपना भरा पूरा परिवार था पांच बच्चों के साथ पर फिर भी बहन जीजा ने उसे आश्रय दिया |
कुछ ही दिनों में बिल्लू को वहां यूँ रहना खलने लगा और उसने मन बनाया की कुछ काम करके वो आत्मनिर्भर बनेगा और यूँ बोझ नहीं बनेगा अपनी बहन पर और ये बात उसने अपने बहन और जीजा के सामने रखी पर वो बेचारा करता तो क्या करता क्योंकि वक्त की मार के कारण वो अपनी पढाई भी नहीं कर पाया था | खूब सोच विचार कर उसने एक साइकिल खरीदी और कुछ चादरें और इस तरह उसने एक नए सफ़र की शुरुवात की और इस तरह ज़िन्दगी ने उसे एक नया नाम दिया “फेरीवाला “ और यही उसकी पहचान बन गयी |
अब यूँ काम धीरे – धीरे चल पड़ा और एक नया विश्वास बिल्लू के मन में आ गया तब बहन ने उसका घर बसाने का मन बना लिया और देखते ही देखते अल्हड़ बिल्लू शादी के बंधन में बंध गया और एक नया पन्ना जुड़ गया उसकी ज़िन्दगी से |
बिल्लू का एक अपना घर समझदार पत्नी, दो बच्चे( एक बेटा ,एक बेटी ) सब ख्वाब सा ही तो जिसकी कल्पना भी शायद उसने न की हो क्योंकि ज़िन्दगी के ग़मों ने कभी फुर्सत ही न दी थी पर शायद ये उसकी हिम्मत ही थी जिसके आगे कुदरत ने भी हार मान ली थी |
अल्हड़ उम्र से शुरू हुआ साइकिल का सफ़र उम्र के पक्के पड़ाव तक चलता रहा और “ फेरीवाला “ कहा जाने वाले बिल्लू ने अपने दोनों बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाया इस काबिल बनाया की वो दोनों अपने पैरों पर खड़े हो सकें और इस बीच उसने खुद की एक दुकान भी ले ली पर साइकिल से लगाव कम नहीं हो पा रहा था क्योंकि वही तो उसकी ज़िन्दगी का आधार थी |
बेटी की नौकरी लग चुकी थी बेटा कॉलेज में था ज़िन्दगी अपनी राह चल ही रही थी की अचानक एक सुबह पसीने में तर बिल्लू बेहोश सा होने लगा और पत्नी की समझदारी से तुरंत हॉस्पिटल ले गए जहाँ पता चला उसे हार्ट अटैक हुआ है और परिवार के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकल गयी | तीन दिन आई. सी. यू में रहने के बाद हफ्ता भर हॉस्पिटल में ही रखा गया उसे और बेहद सख्त हिदायतों के बाद उसे घर भेजा गया और महीने भर आराम करने को कहा गया | इन हॉस्पिटल के दस से पंद्रह दिनों में कॉलेज जाने वाला बेटा अचानक ही इतना बड़ा हो गया था की सारी जिम्मेंदारी उसने बड़ी सहजता से निभाई |
अब बिल्लू का स्वस्थ्य सुधरने लगा था की समाज और रिश्तेदारों की आवाजें कान में पड़ने लगी बेटी के विवाह के लिए और शुरू हुआ देखना दिखाना | हालांकि बेटी अच्छी नौकरी में थी ,डबल एम . ए किया था ,साथ ही रेडियो और अख़बार में लिखती थी हर लिहाज़ से संपन पर ये सब चीज़ें कम पड़ रही थी उसका कहीं भी रिश्ता तय होने के लिए | उम्र बढ़ रही थी साथ ही दबाव और मायूसी क्योंकि बेटा भी शादी लायक हो चला था | जितने मुंह उतनी ही बातें और उतना ही दबाव परिवार की सोच पर |
अचानक से सब कुछ बिखर सा रहा था अब बिल्लू करे भी तो क्या करे साइकिल के सहारे ज़िन्दगी को यहाँ तक तो खीच लाया था अब और क्या कैसे करे कुछ समझ न आता | पर कहते हैं न जहाँ सब रास्ते बंद हो जाते हैं वहां एक राह ज़रूर रह जाती है और ऐसा ही हुआ जब बेटी ने खुद ही अपना जीवन साथी सुझा दिया जो किसी को भी भा नहीं रहा था | काफी लम्बी बातचीत और सोच की तकरार के बाद परिवार मान ही गया और बेटी को हंसी ख़ुशी विदा किया और थोड़े ही दिनों में बेटे का भी विवाह हो गया |
इस तरह बिल्लू खुश था की उसने अपनी सब से बड़ी ज़िम्मेदारी बखूबी निभा ली थी अब वह सुकून से अपनी ज़िन्दगी जी पायेगा | पर काश सोच के हिसाब से ज़िन्दगी चलती – कुछ ही दिन बीते की कड़वाहट , कलह ,कलेश ने घर के वातावरण को दूषित कर दिया | बेटे की पत्नी के नित नए रंग सभी अचंभित व् निराश थे उधर बेटी का जीवन भी कुछ कम मुश्किल नहीं था नया परिवेश ,नए रीति रिवाज़ ,खान पान और सास व् देवरों का रवैया |
क्या करें क्या न करें की जीवन में उथल पथल थी | और ईश्वर की कृपा और समय के हिसाब से सब चलता ही रहा और देखते ही देखते परिवार की कड़ी नाती और पोतों की किलकारियों से गुजने लगी | नए बचपन के संग बिल्लू का उदास जीवन फिर से मुस्कुराने लगा था | पर ज़िन्दगी के इम्तिहान शायद अभी और बाकी थे | तबियत बिगड़ने लगी तो अचानक से हस्पताल में जाँच पर पता चला की दिल के छेक बंद हो रहे हैं तुरंत ही बाईपास सर्जरी होगी | सोचने समझने का समय नहीं था तुरंत ही ऑपरेशन के लिए बेटे और पत्नी ने हस्पताल दाखिल करवा दिया और सभी अनजाने डर से सहमने लगे थे |
जैसे जैसे ऑपरेशन का दिन नज़दीक था बिल्लू की बेचैनी बढने लगी थी और उसने सबसे मिलने की इच्छा ज़ाहिर की | और ऑपरेशन के दिन पत्नी ,बेटा ,बेटी ,दामाद ,नाती सबसे मिल ऑपरेशन कक्ष में मौन हसरत भरी निग़ाहों से देखता हुआ गया | 5 से 6 घंटे का इंतज़ार बहुत लम्बा था सभी चुप ,दिल सुन्न , आँखें नम और हाथ जुड़े हुए | आखिर कार इंतज़ार ख़तम हुआ और डॉक्टर ने बताया ऑपरेशन सफल रहा तब जाकर सबकी जान में जान आई और किसी एक व्यक्ति को इज़ाज़त मिली देखने को तो सहमती से उसकी पत्नी को सबने भेजा और सिर्फ एक झलक पाकर वह भी शांत भारी मन से लौट आई | 3 से 4 दिन इमरजेंसी में रखने के बाद कुछ दिन कमरे में हॉस्पिटल में ही रखा गया और इस प्रकार काफी समय लगा बिल्लू को ठीक होने में | बिस्तर पर पड़े पड़े , दवाई , भोजन में परहेज़ आदि से उसमें काफी चिडचिडा पन आ गया | साथ ही एक समस्या और आ गयी थी की वह एक पैर से पहले से ही लाचार था ( बचपन में पोलियो ग्रस्त के कारण ) दूसरे पैर से एक नस ली गयी थी ऑपरेशन के लिए अब वह बहुत ज्यादा दिक्कत में आ गया था चलने फिरने के लिए | किसी तरह सभी के हौंसला बढाने से उसने वॉकर की मदद से चलने का प्रयास किया और देखते ही देखते थोडा बहुत चलने फिरने लगा पर अब दुकान पर जाना संभव नहीं था इसलिए अब घर पर ही बंध कर रह गया और यह पीड़ा उसे अन्दर अन्दर ही खाए जा रही थी की कैसे मैं चला करता था ,काम करता था अब बिलकुल मोहताज हो गया हूँ और इस तरह बिखरने लगा |
यूँ तो ईश्वर की असीम कृपा से बिल्लू को किसी प्रकार की कोई भी कमी नहीं थी – सुशील पत्नी का साथ जो जीवन के हर उतार – चड़ाव , दुःख –सुख में उसकी ढाल थी , अपना दो मंजिला घर ,अपनी दुकान सर्व संपन जीवन ………पर फिर भी घर बैठना उसे अन्दर ही अन्दर कचोटता था | जिस इंसान ने बचपन से ही खुद का जीवन अपने हाथों से तराशा हो आखिर वो यूँ कैसे बेबस बैठ सकता था | इसी घुटन से वो डिप्रेशन में जाने लगा | सब ने लाख समझाया सारी ज़िन्दगी इतनी मेहनत कर ली अब अपने लिए जियो | पर कुछ नहीं हुआ उसकी निराशा कम नहीं हो पा रही थी अपनी लाचारी लो लेकर |
फिर तय हुआ दुकान पर एक हेल्पर रख देते हैं जो सहारा देकर इन्हें दुकान तक ले जाया करे और बाकी सब कामों में भी मदद कर दिया करे | इस विचार भर से उसकी आँखें चमक उठी थीं की किसी न किसी तरह तो वो अपने काम पर जा पायेगा | पर सोच और असल का फांसला इतना आसान न था | उसके उत्साह में कोई कमी न थी लेकिन न शरीर साथ दे पा रहा था और न ही लोग | सभी का एक ही स्वर था –तुझे क्या ज़रुरत है ऐसी हालत में दुकान पर आने की इतनी तकलीफ झेल कर …कमाऊ बेटा है ,कमाऊ बहू है ….क्या तेरा खर्चा नहीं उठा सकते …. बिल्लू निरुतर हो जाता ….क्या कहे ….क्योंकि ये उसकी इच्छा थी खाली घर बैठना अखरता था | कब तक सामना करता लोगों के तर्क वितर्क का …..वह टूटने लगा और एक बार फिर घर की घर में ही उसकी ज़िन्दगी सिमट गयी |
बचपन से जवानी …जवानी से जीवन के इस पड़ाव तक बिल्लू उर्फ़ “फेरीवाला “ ने जीवन के कई रंग,कई उतार चड़ाव देखे पर अपनी हिम्मत, मेहनत, से हर लाचारी ,हर मुसीबत , हर दुःख पर जीत पाई ……. पर अचानक सब थम गया है क्योंकि न चाहते हुए भी उसे काम से मुक्त होना पड़ा जिसकी टीस उसकी आँखों में अब भी झलकती है ….पर यही शायद जीवन है जो अपनी ही गति से चलता है | पर उसके दिल में सुकून है की उसने ज़िन्दगी में अपने सभी फ़र्ज़ बखूबी निभाए आज भी मुंह में निवाला डालने से पहले वह अपने घर परिवार का पहले सोचता है और शायद सोचता रहेगा क्योंकि खुद के लिए तो वो कभी जिया ही नहीं ……… बिल्लू “फेरीवाला “||
उतार चढ़ाव की मार्मिक कहानी
अच्छी लगी