ग़ज़ल
चांदनी हमें जलाती रही रात भर
आपकी याद सताती रही रात भर !
दिल मैं नाउम्मीदी सी जलती बुझती
यादों की शमां झिलमिलाती रही रात भर !
तिरी खुशबु से महकता रहा जिस्म मेरा
तिरी तस्वीर को सुलाती रही रात भर !
चाँद तारे छुप गए निशाँ के आँचल में
हवायें मोहब्बत के नग्मे गुनगुनाती रहीं रात भर !
वो आकर भी न आया पास मेरे
दिल की सदायें उसे बुलाती रहीं रात भर !
जिसकी उम्मीद में जीते रहे “आशा” हम
उसकी तड़प हमें जगाती रही रात भर !
— राधा श्रोत्रिय “आशा”