ममता भी अख़बार में
सुबह एक हाथ में था समाचार पत्र
और एक हाथ में थी चाय की प्याली।
पीते-पीते चाय मैंने जब नज़र
ख़बरों पर है डाली।
मुख्य पृष्ठ पर सबसे बड़ी खबर
नेता जी का विदेशी दौरा था।
और पत्र के कोने में कहीं एक
किसान गरीबी के लिए रो रहा था
और जब कोई नहीं आया उसे
सहारा देकर ढांढस बंधाने।
तो आज वो ओढ़कर कफ़न
बड़े सुकून से सो रहा था।
और जाते-जाते वो एक सवाल
छोड़ गया कि क्या एक गरीब
की रोटीइतनी महंगी है जितना
विदेशी दौरों में खर्चा हो रहा था।
गरीब,गरीब न रहकर
डायनासोर हो गया।
जो धीरे-धीरे अपना
आस्तित्व ही खो रहा था।
पलटते हुए पन्नों को अचानक
एक खबर पर ठहर गई मेरी नज़र
एक छोटी सी मासूम परी पर
टूटा था हैवानियत का कहर।
और समाज के इन ठेकेदारों
के न्याय को देख लो उस हवस
के पुजारी के साथ ही कर रही है
वो मासूम अपनी ज़िन्दगी बसर।
आओ क्रूर कायरों समाज
से कुछ ऐसी सजा लो।
जिसको पाना चाहो पहले
हवस का शिकार बना लो।
और आगे पढ़ते हुए कहीं पर
बेबसी तो कहीं बेरोजगारी देखी।
ठण्ड से मर रहा कोई इंसान कहीं
कहीं सत्ता की खुमारी देखी।
इक आह भरी मैंने लगा
ज़िन्दगी कुछ कम हो गई।
सहसा ही मेरी आँखें
गम से नम हो गईं।
बालकनी से देखा तो एक माँ अपने
बच्चे को सीने से लगाये जा रही थी
वो गालों को नोचता,बालों को खींचता
फिर भी ये माँ है जो मुस्कुरा रही थी।
सुकून की एक लहर सी दौड़ गई
ये हकीकत है कोई किस्सा नहीं है।
बस इक माँ ही है जो इन गन्दे
समाचारों का हिस्सा नहीं है।
रख दिया एक कोने में बड़ी
हिकारत से मैंने अख़बार।
खुली हवा में साँस लेने को
हो गया था तैयार।
पहुंचा एक चौराहे पर जहाँ बहुत
भीड़ लगी थी।
एक कागज में लिपटे नवजात पर
कुत्ते कर रहे थे वार।
तभी उन तमाशबीनों में से कुछ
लोग उसे बचाने को हुए तैयार।
मगर तब तक ज़िन्दगी की जंग
वो नवजात गया था हार।
बस इसी रिश्ते पर भरोसा था
जो टूट रहा है।
लगा की सांसो का साथ
अब छूट रहा है।
माँ के आँचल में तो मिलता है
जन्नत सा करार।
मगर आज ममता भी हो रही
हैं अख़बार में शुमार।
कड़वी पर सच्चाई की सजीव तस्वीर उकेरी आपने
शुक्रिया आदरणीया