कविता

घर-घर दीप जले/गीत

घर घर दीप जले

 

ज्योति-पर्व आया मनभावन

घर-घर दीप जले।

रजत हुआ रजनी का आँगन

श्यामल गगन तले।

 

थमे-थमे दिन पंख लगाकर

फिर गतिमान हुए।

हाथ बढ़ाकर खुशियों ने

ऊँचे सोपान छुए।

 

नष्ट हुआ कष्टों का क्रंदन

सुख के सूत्र फले।

 

हुआ अस्तगत तम अनंत में

गम का मेघ छंटा।

भक्ति-भाव से माँ लक्ष्मी का

सबने नाम रटा।

 

चलीं हवाएँ उज्जवल चन्दन

अँधियारे दहले।

 

देहरी-द्वार सजाने आए

तोरण रंगोली।

धन की देवी सुख-समृद्धि की

भर लाई झोली।

 

गृह-लक्ष्मी के लब फिर पावन

मंत्रों को मचले।

 

ले आई है शुभ दीवाली

उम्मीदें अनगिन।

लूट रहे हैं लोग पर्व के

ये प्यारे पल छिन।

 

नयन नीर भर, लिए नेह मन

अपने मिले गले।

 

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]