कुण्डलिया छंद
लाठी हाथ मे लीजिए, बड़े काम की चीज़
देखि के दुश्मन भी डरें, रहे हाथ को मीज
रहे हाथ को मीज , देखि लाठी को भइया
कहे राज कविराय , मची जग ताथा थइया
जीव जन्तु समझाय , चली लहराती लाठी
पड़ी हाथ शैतान , चली इठलाती लाठी
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
शनिवार ३१/१०/२०१५