गीत : पुरस्कार वापसी
साहित्यकारों के पश्चात् कुछ फिल्मकारों और श्री भार्गव जैसे वैज्ञानिकों द्वारा पुरस्कार वापसी की घोषणा पर प्रकाश डालती कविता–
प्रतिरोधों की लहर नही ये, प्रतिघातों की धारा है
जनमत नही देश का, केवल कुछ लोगों का नारा है
ये कुछ लोग, सत्यता की जागीर नहीं हो सकते हैं
सवा अरब की आँखों की तस्वीर नहीं हो सकते हैं
खैराती ईनाम, हिन्द का ताज नहीं हो सकते हैं
रट्टू तोते भारत की आवाज नहीं हो सकते हैं
देवदास की चंद्रमुखी, माँ सीता सा व्यवहार करे
झोला छाप चिकित्सक जैसे, रोगों का उपचार करे
जैसे चंद कलंकी, कुल का दीप जलाने निकले हों,
रावण के वंशज, राघव का वंश चलाने निकले हों,
गौ माता से दूर रहे जो बस कुत्तों के पालक हैं
जयचंदों के दूत बने हैं, षड्यंत्रों के चालक हैं
अरे भार्गव, विज्ञानी मन पर क्यों भूत सवार हुआ?
पहली बार भला क्यों तुमको इतना कष्ट अपार हुआ
वैज्ञानिक हो, किसी पक्ष के धड़े नहीं हो सकते हो
कुछ भी हो अब्दुल कलाम से बड़े नहीं हो सकते हो
देख मज़हबी नफरत, सबसे नाता तोड़ दिया होता
भारत रत्न मिला था उनको वो भी छोड़ दिया होता
लेकिन वतनपरस्त सदा ईमान बचा कर रखते हैं
जनता से जो मिला, वही सम्मान बचा कर रखते हैं
लेकिन तुम तो इस इज्जत का कचरा कचरा कर बैठे
चंद चैनलों के कोठों पर आकर मुजरा कर बैठे
फिल्मकार सत्कार बेचकर रंग जमाने निकले हैं
गुमनामी के मंज़र में कुछ नाम कमाने निकले हैं
लगे रहो मुन्ना भाई, अपनी दूकान चलाने में
10 जनपथ से मिला तुम्हे, वो सारा कर्ज चुकाने मे
परमवीर चक्रों को जिस दिन सब सैनिक लौटायेंगे
उस दिन हम भी मोदी को पक्का शैतान बताएँगे
लेकिन चंद चटोरों की तारीफ नहीं कर सकते हैं
हम जनता के स्वर हैं सस्ती मौत नहीं मर सकते हैं
—–कवि गौरव चौहान