लघुकथा

इंसानियत….

धूप इतनी तेज थी कि बाजार जाने की इच्छा ही नही हो रही थी. ऊपर से सामान की कमी भी दिख रही थी जो प्रत्येक दिन के उपयोग में लाया जाता है, साथ मे गुस्सा भी आ रहा था कि मैं किस जगह आकर फस गई, जहॉ ७:३० बजने के बाद बाजार में जाना भी मना था | यही सब बातें सोच रही थी तभी शाम ६ बजे मन में आया कि आज किसी तरह बाजार जाना है. बस क्या एक सहेली को साथ लेकर निकल पडी, चाहे जो हो देखा जाएगा | एेसे मैं जिस जगह रहती थी वहॉ का नियम था सूर्य अस्त होते ही अपनें घरों मे शामिल हो जाना लेकिन हमदोनो सभी नियमों को नजरअंदाज करते हुए बाजार पहूँच गए. जितने भी जरूरत वाले सामान थे जल्दी- जल्दी लेने लगे.

पूरा सामान लेने के बाद समय देखी तो ये क्या ? ये तो ७:३० बज चुके है अब हम दोनो कें मूँह पर हवॉइयॉ उडने लगा, डर के मारे पसीना से तर -बत्तर हो गये क्योकी ये क्षेत्र नक्सलवादी में पडता था | अब क्या होगा ? बाजार से घर भी अच्छी -खासी दूरी पर थी, कोई रिक्सावाला भी नजर नही आ रहा था, सामान भी भारी था जिसे हाथ में लाना भी मुश्किल था फिर भी दोनो लोग हिम्मत बॉधे और खुद ही सामान लेकर बाजार से रवाना हुए | किसी तरह हकलाते हुए आधा रास्ता पहूँचे फिर भी घर पहूचनें मे १५ मिनट बाकी ही था तभी एकाएक पिछे से आवाज आई- ‘दीदी-दीदी लाइये, मै आपका सामान आपके घर तक पहुँचा देता हू |’

मैंने आश्चर्य सें पिछे की ओर देखा कि यहॉ इतना मधुर आवाज किसका हो सकता है | अरे ये तो वही लडका है जो हमलोग के मोहल्ले में दूध देने आता था शायद मैने भी एक बार इससे दूध लिया था | सामान का बोझ तो उसे मै दे दी लेकिन मन ही मन डर भी रही थी कि कही ये सामान लेकर नौ दो ग्यारह न हो जाए क्योकि ऐसी घटना यहॉ बहुत बार घट चुकी थी | वह साइकिल से था जिसके कारण वह हमलोग से आगे घर पहुँच गया और सामान सुरक्षित रख वहॉ से निकल गया |

जब हम दोनो घर पहुँचे तो सामान को सुरक्षित रखा हुआ पाया, लेकिन उस लडके को वहॉ नही पायें , और नही उसे धन्यबाद बोल पाये| मुझे आज भी बहुत बडा खेद है कि मैं उसके इतने बडे इंसानियत पर मैं एक धन्यबाद शब्द भी नही बोल पायी | ऐसे आज भी मै उसे धन्यबाद बोलने के लिए ढुढती हूँ ताकि एक बार भी कही नजर आ जाएँ|

निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

3 thoughts on “इंसानियत….

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    निवेदिता जी , लघु कथा अच्छी लगी .आप बहुत भावुक है और ऐसा ही हर इंसान को होना चाहिए ,तभी सद्भावना का वातावरण पैदा हो सकता है . आप उस लड़के का धन्यवाद करने के लिए तड़प रही हैं ,यह भी तो मानवता ही है , वर्ना बहुत लोग तो ऐसी छोटी बात की परवाह ही नहीं करते .

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