कविता

गाय सबकी माता है

गाय सबकी माता है ना करो इसे अपमान,
इसे धर्म में बाँटकर ना करो इस पर संग्राम।

माँ के बाद गाय बच्चों को अमृत पान कराती है,
हिन्दू हो या मुस्लिम हर बच्चे को दूध पिलाती है।

इसके दूध निरोग बनाते गोबर-मूत्र भी काम आते,
फिर भी क्यों लोग यहाँ इस माँ की बली चढ़ाते।

घास-भूसा खानेवाली है बड़ी ही भोली भाली,
अंग-अंग में देवता बसते इसकी बात निराली।

श्रीकृष्ण भी गौ भक्त थे उसे मूरली सुनाते वन में,
कामधेनू गाय निकली थी एकबार समुद्र मंथन में।

गौ माँ के आँखों में देखो भरा है माँ का प्यार,
फिर भी क्यों इसे माँ कहने से करते हो इनकार।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

6 thoughts on “गाय सबकी माता है

  • Man Mohan Kumar Arya

    कविता बहुत सुन्दर व गो के यथार्थ गुणों से पूर्ण लगे। हार्दिक धन्यवाद दीपिका जी।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    दीपिका जी , कविता अच्छी लगी लेकिन यह भी एक सच है कि भारत दुनीआं में सब से ज़िआदा बीफ एक्सपोर्ट करता है . जो लोग गाये पर राजनीति करते हैं ,उन को उन स्लाटर हऊस्ज़ के खिलाफ आन्दोलन करना चाहिए नाकि गरीब लोगों पर अत्याचार करना चाहिए .

    • Man Mohan Kumar Arya

      विनम्र निवेदन है कि सत्य और असत्य का निर्णय गुण व दोष तथा तर्क व वितर्क से होता है। इसमें सरकार, गोभक्त और गोभक्षक एक मंच पर आएं, गुण व दोष की चर्चा करे, जो पक्ष सत्य व देश, समाज व मनुष्यों के लिए हितकारी सिद्ध हो, उसे समाज व देश स्वीकार करे। महर्षि दयानंद जी ने गोभक्षकों से एक प्रश्न किया है कि जब गोहत्या करने से सभी गायें समाप्त हो जाएँगी, तब तुम क्या खाओगे? क्या एक दूसरे का वध करोगे? महर्षि दयानंद जी ने गाय से होने वाले लाभ वा हत्या से होने वाली हानियों पर एक पुस्तक “गोकरुणानिधि ” लिखी है। वह निर्णय करने में पूर्ण सहायक है। आवश्यकता केवल सहृदयता से पढ़ने की है। आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। यदि मैंने कुछ अनुचित लिखा हो तो आपसे क्षमा चाहता हूँ।

      • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

        मनमोहन जी , मेरा तो सिर्फ यह ही कहना है कि या तो बीफ एक्सपोर्ट बिलकुल बंद हो या गरीब लोगों जिन का कई दफा कोई कसूर भी नहीं होता उन को मार दिया जाता है ,उन को तंग करना बंद हो .यह डब्बल स्टैण्डर्ड क्यों ? दुसरे हिदू धर्म में गाये को माता के तौर पर देखा जाता है लेकिन दुसरे देशों में ऐसा नहीं है .गाये को छोड़ बकरी का दूध भी तो बहुत अच्छा है लेकिन बकरी के मांस की कोई बात नहीं करता . भारत में पोल्ट्री फार्मिंग पिछले पचीस तीस सालों में इतनी बड़ी हैं कि हम भी भारत में आ कर अक्सर हैरान हो जाते थे कि कभी ज़माना था मीट की दुकानों में चिकन होते ही नहीं थे . अब पोल्ट्री फार्मिंग फैक्ट्री बन गई हैं जिन में नए नए ढंगों से उत्पादन बड रहा है .यहाँ तक मेरा अपना सवाल है मैं बीफ नहीं खाता ,ना ही मेरे घर का कोई सदस्य खाता है लेकिन बाकी मीट जो आम खाते हैं हम बनाते है लेकिन मैं किसी ना खाने वाले पर कोई टिपणी नहीं करता और ना ही इस पर किसी से बहस करता हूँ किओंकि यह अपनी अपनी सोच है .दुसरे मछली दुनीआं में लाखों टन रोज़ खाई जाती है .इंडिया में ही लाखों लोगों की रोज़ी रोटी ही मछली पकड़ने पर चलती है .इस के इलावा कई देशों में घोड़े का मांस खाया जाता है . चीन में तो कोई जानवर बचा ही नहीं . जंगलों में रहने वाले लोग तो जानवर मार कर ही गुज़ारा करते हैं ,कई तो कीड़े मकौड़े भी खाते हैं और सांप भी खाते हैं , तो इन सब जानवरों में भी तो जान है .दही में हम कितना बैक्तीरीआ खा जाते हैं , फसलों पर हम स्प्रे नहीं करते तो फसलें नहीं होंगी .जब हम यह छोटे छोटे कितानुं मारते हैं तो उन में जान दिखती नहीं जबकि उन में भी जान है लेकिन यह छोटी जान है ,है तो जान ही . सर में जूएँ पड़ती है तो तब भी हम उन को किसी ना किसी ढंग से मारते हैं ,हाथों से या दुआइ से . मनमोहन जी मुझे मुआफ कर देना जो कुछ मैंने लिखा है ,हो सकता है आप को बुरा लगा हो लेकिन मैंने अपने मन की बात कह दी है और किसी मीट ना खाने वाले पर कभी भी कोई नुक्ताचीनी नहीं करता किओंकि बहुत लोग हैं जो वैजिटेरियन हैं ,यह उन की चौएस है . कभी मैं भी मीट नहीं खाता था और बीअर भी नहीं पीता था लेकिन अब पीता हूँ . दलीलें दे कर यह साबत करना कि मीट खाना चाहिए या नहीं खाना चाहिए ,इस झगडे में मैं कभी पड़ा नहीं हूँ और अगर कल को मैं मीट खाना छोड़ दूँ तो किसी को यह नहीं कहूँगा कि वोह भी खाना छोड़ दें .

        • Man Mohan Kumar Arya

          नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। आपकी सभी बातें ठीक हैं परन्तु साथ ही यह भी सत्य है कि मनुष्य को किसी भी बेकसूर प्राणी की हत्या और वह भी अपने जीभ के स्वाद व भोजन करने के लिए करने का नैतिक अधिकार नहीं है। ईश्वर ने हमें व सभी प्राणियों को बनाया है। यदि एक पशु गाय, भैंस, भेड़, बकरी, मुर्गा, मुर्गी, घोड़ा, बैल व भैंसा आदि, को हिंसक व मांसभक्षी लोग न मारे तो वह कई महीनों व वर्षों तक जीवित रह सकते हैं और उससे प्रकृति व देश को कहीं अधिक लाभ हो सकता है। कुछ थोड़े से लोगों के स्वार्थ के लिए अधिक लोगों के अधिकारों व हितों की अनदेखी अपने आप में ही अन्याय है। भारत में कुछ कानून भी हैं, परन्तु कुछ लोग उसका पालन नहीं करते। कुछ राजनीतिक लोगों का आश्रय व प्रश्रय भी उन्हें मिलता है। यदि मैं चाहता हूं कि कोई मेरी भावनाओं को ठेस न लगाये तो मेरा भी दायित्व है कि मैं भी सभी की भावनाओं का ध्यान रखू और ऐसा कोई कार्य न करूं जिससे किसी की भावना को ठेस लगती है। दूसरों से भी मैं यही अपेक्षा करता हूं। लेकिन भारत में यह सभी बातें एकतरफा हैं। हत्या किसी की भी हो, मनुष्य की या पशु की, मानवता की दृष्टि से यह बुरी है। हमें दूसरे देशों को नहीं देखना क्योंकि हम वहां कुछ नहीं कर सकते। हमें अपने घर में मनुष्यता को ध्यान में रखते हुए सुधार करना है। मैंने जितना पढ़ा व समझा है, उसके अनुसार अकारण किसी भी प्राणी की हिंसा करना अधर्म व घोर पाप है। किसी भी प्राणी की हत्या नहीं होनी चाहिये। इसे उचित नहीं कहा जा सकता। यदि ऐसा होता है तो मुझे पीड़ा होती है, इसका एक कारण यह भी होता है कि हम उन बेकसूर प्राणियों के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं। उनकी रक्षा का भार ईश्वर ने बुद्धिशील मनुष्यों को दिया है। मुझे आपसे व आपके विचारों से कोई शिकायत नहीं है लेकिन मैं चाहता हूं कि मनुष्य को अपने प्रत्येक कार्य को सत्य की कसौटी पर सत्य सिद्ध करना चाहिये। असत्य को छोड़ देना ही मनुष्य का कर्तव्य है। सादर।

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