दोहों में प्रण कर इस दिवाली
दीपमालिका है सजी , प्रकाशित हुई रात।
भूमि पे उतरी जैसे , तारों की बारात। १
चटके न दिल का दीया , हो सब में विश्वास।
स्नेह सिक्त बाती जले , होय प्रेम का वास। २
मन के आँगन में जले , ख़ुशियोंवाले दीप।
गले लगे लोग जैसे , पलता मोती सीप। ३
दीया प्रेम – मैत्री का , दिलों में बले आज
एक लय – ताल में बजे , जग वीणा का साज। ४
दीप , झालर, बल्बों से , हो ज्योति का प्रसार।
रात लगे महारानी , गहन तम जाय हार। ५
दिल खोल के त्योहारी , बाँटे सालोंसाल।
लक्ष्मी रह पीढ़ियों तक , रघुवंश है मिसाल। ६
सद्भाव की दीवाली , संग हैं पर्व चार।
धनतेरस , नर्कचौदस , भाइदौज , नवसाल। ७
घरों में होय सफाई , करें कूड़ा निकास।
लक्ष्मी आय उन के घर , जहाँ स्वच्छता वास। ८
अमा रात लगे पूनम , छाए दीप प्रकाश।
जगमागाती माँ धरा , चमके है आकाश। ९
कर ‘ मंजु ‘ भू हरी -भरी , प्रण कर इस त्यौहार।
न जलाएं पटाखें हम , कर प्रदूषण प्रहार। १०
— मंजु गुप्ता
वाशी , नवी मुंबई