पद्य साहित्य

११० चतुष्पद

हद से ज्यादा खुश हैं—- क्या बात है।
चेहरे पर भरपूर मुस्कान, लाजवाब है।
किस कारण– खिलखिला उठा चेहरा,
मुझे भी जानने की, हृदय से आस है।।
१४-१०-२०१५

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जिन्दगी के राह में,अनेकों मोड़ मिलते हैं।
सब पर लोग चलकर~ गुजरना चाहतें हैं।
हर समय बिताने के बाद~~ आखिरी में,
एक ही जगह पर जाकर लोग मिलते हैं।।
०६-१०-२०१५

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सब कुछ है यहाँ लेकिन क्यों~~विरान सा लगता है।
चहल-पहल है यहाँ लेकिन क्यों बेताल सा लगता है।
धरातल पर इतनी हरियाली फैलने के बावजूद भी,
पहाड़, बादलों का मिलन क्यों बेजुबान सा लगता है।।

२६-०८-२०१५

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हौसला पर ही ~~~~~~मंजिल टीका है।
बुलन्दी से ही~~~~~~~ जीवन टीका है।
बुलन्दी भरा हौसला ~जिसके पास न हो,
उसके जिन्दगी का सफर भी फिका है।।

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मेरे अन्दर हमदर्द को जागृत कर क्यों दूर चली गई।
प्यार को अंकुरित कर- दिल में जगह क्यों बना गई।
मैं यत्र-तत्र भटकता रहता हूँ तुम्हारे बिन, इस जग में,
हमारे महफिल भरी जिन्दगी में एक छवि क्यों दे गई।।
०१-०७-२०१६

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हर लोग आज यहाँ पर परेशान क्यों हैं।
एक दूसरे को आजमाने में हैरान क्यों है।
आपस में टकराकर समाप्त हो रहे है,
दुनिया में बन गया ऐसा इन्सान क्यों हैं ।

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हमारे अन्दर हैं—- सुन्दर,
तो सारा जग हैं—- सुन्दर,
सुन्दरता का भण्डार यहाँ,
सबके मन में हैं— सुन्दर।

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हृदय की आवाज़— जब निकलने लगती है।
तो शब्दों के रूप में पन्नों पर छपने लगती है।।
किसी की भावना उभरकर सामने आ गई है।
न चाहते हुए भी कविता बन निकल गई है।।

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मेरी जिन्दगी का एक-एक लम्हा क्यों बिखरता जा रहा है।
जो सपने सजाये थे वो तिनका-तिनका उड़ता जा रहा है।
इसे मैं कैसे इकट्ठा करूँ बेहतर जीवन के लिए,
इस समस्या ने मेरे उलझन को बढाता जा रहा है।।

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सुखमय यात्रा मैं करते आज तक आया हूँ।
दुखमय यात्रा को आज से मैं देख रहा हूँ ।
कितनी लम्बी यात्रा होगी कैसे जान पाऊँ,
उधेड़बुन में आज मैं पल पल सोच रहा हूँ।

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सुखमय जीवन जा रहा है।
दुखमय जीवन आ रहा है।
महसूस ऐसा क्यों आज,
पल-पल मुझे हो रहा है।।

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देखते-देखते नयनो के जरिए हृदय में—- महल बना लिया।
बात करते-करते आवाज़ों के जरिए मुझे दिवाना बना दिया।
अब तक तेरी अदाओं के रंग में ऐसा रंगीन हो गया हूँ— मैं
हमेशा के लिए मेरे ख्वाबों-ख्यालों मे स्थायी जगह बना लिया।
१२-०५-२०१५

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रह-रह कर मन में क्यों कसक उठ जाती है।
मेरे दिल पर कोई दर्द क्यों दस्तक दे जाती है।
जितना भी मैं उसे भूलने की कोशिश करता हूँ
उतना ही अधिक उदासी मन में छा जाती हैं।।
०७-०५-२०१५

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ये दुनिया सिर्फ मतलब की– -संगी है।
काम निकालने के लिए साथ– देती है।
स्वार्थसिद्धि हो जाता इनका पुरा अगर,
साथ छोड़ कर रफूचक्कर हो जाती है।

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कैसा रहा हमारे फूलों का खुशबू।
कुछ तो बताइए हम भी सुन लूँ।
बहुत मेहनत से हमने उगाया था,
सोचा मित्रों को समर्पित कर दूँ।
०३-०५-२०१५

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मोहब्बत की उम्मीद पे ही जिन्दगी सँवरती है।
झुकी – झुकी नजरों में मोहब्बत बसीं रहती है।
मोहब्बत में ही सब कुछ बयां हो जाता है यारों
इशारे ही सबकुछ है जो लबों पे नहीं आती हैं।।
२९-०४-२०१५

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जो सो जायेगा——– वो खो जायेगा।
जीवन मे कभी कुछ नहीं- बन पायेगा।
ऐ मेरे प्यारे साथियों सभी से गुजारिश है,
किसी भी स्थिति में कभी नहीं सोयेगा।

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अगर हमारा संयोग न——- होता,
तो हम फेशबुक पर कहाँ से आते।
अगर हम आईडी बनाया न– होता,
आप लोगों से कैसे होती मुलाकातें।।
२७-०२-२०१५

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हांथो में छलकता जाम का प्याला होता।
आँखों में उल्फत का नजारा होता।
तलवारों की जरुरत नही पड़ती— यहाँ
काश नजरों से कत्लेआम हमारा होता।।
१८-१२-२०१५

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सब भरा पुरा है यहाँ लेकिन लगता सुनसान क्यों ?
हर कार्य कठिन यहाँ पर लगता आसान क्यों ?
बच्चे- बुढे-व्यस्क हर उम्र का यहाँ चहल- पहल,
फिर भी यहाँ पर लोग एक दूसरे से परेशान क्यों?
१८-१२-२०१५

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गजब की एकता देखीं हमने गलत राह पर चलने की।
लोग इकठ्ठा हो जाते हैं नियम को ताख पर रखने की।
इसमें मनुज का दोष नहीं यह परंपरा रही यहाँ,
नीचे से लेकर उपर तक देते सीख गलत करने की।।
१८-१२-२०१५

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तुम दूर सही तो क्या हम तुम्हें ही याद करते हैं।
तुम मिलो या ना मिलो,मिलने की फरियाद करते हैं।
प्यार में मुकद्दर का सिकन्दर कौन बना है आज यहाँ,
मैं कल भी प्यार करता था आज भी प्यार करते हैं।।
२२-१२/२०१५

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प्रकृति के गोद में, नदी किनारे क्या चाल है।
लाल जुता खाकी वर्दी में क्या कदम ताल है।
बनें रहे हमेशा इस देश के जांबाज सिपाही,
ईमानदारी पास रखना देश का बूरा हाल है।।
१८-१२-२०१५

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नदी किनारे खाकी में लड़की खड़ी है।
खाकी में दिखने के लिए खुब लड़ी है।
जो चाहत रखी थी अपने जिन्दगी में वो,
आज उस दहलीज पर वो खुद खड़ी है।।
१८-१२-२०१५

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माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद सदा बने रहे।
भगवान धनवन्तरी की कृपा सदैव बने रहे।
धन धान से परिपूर्ण स्वथ्य चिरायु हो,
ढेरों शुभकामनाएं आप सब पर बने रहे।
०९-११-२०१५

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निंद आती है सपने आते हैं।
याद आती है ख्वाब सजाते है।
ख्यालों में तैरते हुए लम्हों को,
करवटें बदलते विताये जाते हैं।

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नव किरण बनकर मेरी मित्र परिधि के अन्दर आ जा।
कर दें सबका जीवन स्वर्णमय प्रकाश अन्दर फैला जा।
यहा अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से साहित्य की दुनिया में ,
साहित्यमय कर सर्वत्र अलौकिक ज्ञान दीप जला जा।
०५-१२-२०१५

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नव किरणों ने स्वर्ण सी आभा लिए सुप्रभात कह रही है।
ठन्ढी हवा शीतलता की छांव लिये सर्वत्र बह रही है।
पंछियों का कलरव बच्चों की किलकारी खुशनुमा पल में,
स्वर्णमय चादर विछाये स्वर्णिम जीवन में उमंग भर रही है।
०२-१२-२०१५

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उठो सबेरा हो गया।
देखो चाँद भी सो गया।
स्वर्णिम आभा को देखकर,
देखो अंधेरा वो गया।
०१-१२-२०१५

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लगता है वर्षों से हुई मुलाकात
सामने से अब कभी होती नहीं बात।
कभी तो आ जायें आमने-सामने,
अब ये जुदाई होती नहीं बरदाश्त।
२२-११-२०१५

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जन्मदिन की की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ मुबारकबाद हो।
आपका आनेवाला भविष्य निरन्तर अग्रसर उज्ज्वलमय हो।
हमेशा नेक रास्ते पर चलते हुए जीवन में एक नई उचाई दे,
अच्छे इंसान बनकर हमारे बीच में रोशन करें मेरी यही दुआ हो।
साली के जन्मदिन पर

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इन जुल्फों को न ऐसे लहराया करो।
इन अदाओं को न ऐसे दिखाया करो।
इन आँखों के साथ मुस्कान छोड़कर,
मुझे इस कदर न तड़पाया करो।।

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बहुत सुंदर आप अपनी रचनाओं को किये जा रहे हैं।
सभी रचनाकारों को अच्छी सीख दिये जा रहे हैं।
हमारे बीच आपकी प्रतिभा निखरती रहे हमेशा,
हम आभार व्यक्त एवं धन्यवाद देते जा रहे हैं।।

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प्राकृतिक छटा निखर रही है।
बादलों के नीचे डगर रही है।
यह हरा भरा धरती का चादर,
कितना सुन्दर लहर रही है।
२२-१२-२०१५

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इसी तरह हमेशा मुस्कुराते रहो।
लोगों को खुशियाँ सुनाते रहो।
अपने में मित्रवत व्यवहार कर,
हमेशा आगे कदम बढाते रहो।
३०-०७-२०१५

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आपकी याद में खोए हुए हैं।
अपने बेड पर सोए हुए हैं।
आपसे बाते करते हुए,
सपनों को संजोए हुए हैं
३०-०७-२०१५

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जय विजय परिवार का अभिनन्दन करता हूँ।
सभी रचनाकारों पाठकों का वन्दन करता हूँ।
आगे बढाने का श्रेय सिंघल जी को जाता है,
मैं हृदय से ऐसे विभूति को नमन करता हूँ।।

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तुम कहाँ हो नहीं मिला कुछ खोज-खबर।
मिलने की कोशिश करती तुम रोज-मगर।
मालूम नहीं कहाँ हो इस दुनिया में मशगूल
गई नही होती तुम दूर,मैं देखता रोज-अगर।।
०३-०१-२०१६

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भूली- भटकी चली गईं तुम छोड़ गईं संसार,
बिना तुम्हारे लगता जीवन जैसे हो निस्सार,
सारे बंधन तोड़ गई हो और गईं मुख मोड़ ,
ह्रदय बसी है याद तुम्हारी आँखों में जल-धार !

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मै कभी देखा न तुमने कभी देखा।
तो क्यों बनाई याद करने की रेखा।
अब दूर -दूर रहना है इस जहाँ में,
तो क्यों करें हम यहाँ देखीं-देखा।
०३-०१-२०१६

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मैं तुममें जो समझा वो न देख पाया।
समझने की कोशिश की न हो पाया।
अब राह बदल लो तूँ मेरी जिन्दगी से,
चाल बदल लो तूँ मैं खुश न रह पाया।
०३-०१-२०१६

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सीमारेखा पर डटे भारतीय वीर जवान।
पीछे नहीं वो हटे भले हुए लहू-लुहान।
आतंकवादियों से लड़ते रहे तब-तक,
जब-तक खुद हो गये नहीं बलिदान।
०५-०१-२०१६

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अब तुम मेरी हो गई हो, मेरा अरमान पूरा कर दे।
मैं तेरे लिए आया हूँ, तूँ मेरी हर आस पूरा कर दे।
हम दोनों मिलकर दुनिया में ऐसा ख्वाब सजायें,
मैं तेरे सपने सच करदूँ, तूँ मेरे सपने सच करदे।
06-01-2016

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जिन्दगी का हर लम्हा टूट कर बिखर गया।
किसी का साथ देकर मुझसे रूठ कर निकल गया
कुछ ऐसा करो जतन कि मैं तुम्हारा हो जाऊँ
तुम्हारे साथ रहकर मैं इस जिन्दगी से उबर गया।
०५-०१-२०१६

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यादों के झरोखों में मिलकर तैरते रहेंगे,
यादों रूपी दरिया में डुबे तो खो जायेंगे,।
मिलने की कोशिश करते रहना नहीं तो,
एक दूजे को सदा के लिये भूल जायेंगे।

अगर सभी कोशिश हमेशा करते रहेंगे।
एकदिन जरूर आपस में मिल जायेंगे।
उसके बाद खुशियाँ एक दूजे में बाटेंगे,
फिर हमेशा की तरह बात करने लगेंगे

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जीवन की ज्योति जलाते रहें,
प्रकाश की किरण फैलाते रहें।
जो हैं अभी भी अंधेरों में डूबे ,
उनके यहाँ प्रकाश पहुंचाते रहें।।

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आदरणीय मित्रों के प्रति समर्पित —

मेरे आदरणीय मित्रो पोस्ट पर भी आया करें कभी कभी।
मेरी रचनाओं को पढकर कमियां बताया करें कभी कभी।
मैं उम्मीद ही नहीं बल्कि इस काम केलिए आशा रखता हूँ।
सुझाव सलाह रूपी सहयोग हमें दिया करें कभी -कभी।

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आप अपने लेखनी को मत छोड़ियेगा।
हौसले के उड़ान को नहीं तोड़ियेगा।
यह मिला हुआ गुण ईश्वरीय वरदान है ,
इस दुनिया में लावारिस मत छोड़ियेगा।

पढने की बात रही सो पढा कीजिएगा,
पढने के जरिये ही लेखन कीजिएगा।
ज्ञानोदय में इसका भी अहम स्थान है,
जिन्दगी के हिस्से में जगह दीजिएगा

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आपस में आप सभी मित्र जन होली मनाई,
प्रेम रूपी दिलभरे रंगों को एक में मिलाई,
यही मैं ईश्वर से कर बद्ध प्रार्थना करता हूँ,
सभी मित्र अपने-अपने घर खुशियाँ मनाई

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पैग-पे- पैग हम तो चढाते रहे।
जाम-पे-जाम हम तो लगाते रहे।
जैसे जन्नत में हूँ ऐसा हुआ असर,
आनंद, कुछ समय गुदगुदाते रहे।

पानी को हर पैग में, मिलाते रहे।
दोनों मिलकर नशा भिगाते रहे।
बाद में मेरा, मौसम रंगीन हुआ।
कि अपने को ख्वाब में डुबाते रहे।

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रह-रह कर मन में क्यों कसक उठ जाती है
मेरे दिल पर दर्द की क्यों दस्तक दे जाती है
जितनी भी कोशिश करता हूँ उसे भूलने की
उतनी ही अधिक उदासी मन में छा जाती है

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घुमड़-घुमड़ कर बादल आया,
चारों तरफ पानी बरसाया।
पानी की बौछारें करके,
किसान भाइयों को तड़पाया।

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अपने आपके लिए…. बहुत से लोग जीते हैं।
कभी एक दूजे के लिए भी.. लोग जी लेते हैं।
ऐसा करें, लोग दिल में अच्छा जगह देते रहे,
अपने से ज्यादा दिलदार दूसरे लोग ही देते हैं।

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सुनो साथियों हमसे दिल लगाकर तो जाना,
एक पल हँसीं ख्वाब में बिताकर तो जाना।
मेरी इन अदाओं को~~ एक बार तो देखो,
आगोश बाहों का क्षण भर लेकर तो जाना।
०७-०७-२०१५

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अब तुम्हारे साथ रहने को दिल करता है,
साथ में रहकर हँसने को दिल करता है,
जब दूर रहना था हम दोनों को यहां पर,
तो हम एक दूसरे के साथ क्यों रहता है
२४-०२-२०१५

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काले-काले बालों को लहराने से, नभ में काली घटा छाने लगी।
ओठों पर मुस्कुराहट लाने से~~चेहरे पर हरियाली छाने लगी।
ये जुल्फे, ये आँखें, इस मधुर-मधुर मुस्कुराहट के संमागम से,
ऐसा कर गई, मुझ पर जादू, कि ख्वाबों-ख्यालों में आने लगी।

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हर लोग आज यहाँ पर परेशान क्यों हैं
एक दूसरे को आजमाने में हैरान क्यों है
आपस में टकराकर समाप्त हो रहे है
दुनिया में बन गया ऐसा इन्सान क्यों हैं

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ये दोस्ती का कितना खुशनुमा पल है
रिमझिम से, मिलकर कितना तर हैं
हमेशा बने रहे आपका सुनहरा पल
हमारी हर क्षण दुआ आपके उपर है

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कहीं है गर्मी कहीं है धूप कही आग की लपट चल रही है।
कहीं पशु, छाँव एवं कहीं मछलियाँ पानी बिन तरस रहीं हैं।
सूर्य कि किरणों ने इतना आग की ज्वाला उगल रही है।
कि मानव जाती ने भी शीतलता की तलाश कर रहीं हैं।।
११-०६-२०१५

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पर्यावरण का सुरक्षा करना हमारा धर्म है
वृक्ष और पौधा लगाना यही हमारा कर्म है
इससे वायुमंडल का संतुलन हो जाता है
पृथ्वी को हरा भरा करना यही सत्कर्म है
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
दुनिया वालों से हमारा एक यही पुकार है
बच्चों की भान्ति वृक्षों का सत्कार करना है
वृक्षों से धरा को सजाने और सँवारने के लिए,
वृक्षारोपण के लिए सभी को प्रेरणा देना है

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नज़र से नजर मिली तो मुलाकातें बढ गई।
हमारे तुम्हारे सफर की कुछ बातें बढ़ गई।
हर मोड़ पर खोजने लगी तुम्हें मेरी आँखें,
ऐसा हुआ मिलन कि हर ख्यालों में आ गई।
/०७-०६-२०१५

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जिन्दगी बहुत हसीन है हँस- हँस के जीना यारों ।
दुनिया बहुत लम्बी-चौड़ी है सबको हँसाना यारों।
अपने तरफ से सबका पूर्ण सहयोग करना यारों।
किसी को दर्द की दुनिया मे पहुचाना नही यारों ।

नज़र से नजर मिली तो मुलाकातें बढ गई।
हमारे तुम्हारे सफर की कुछ बातें बढ़ गई।
हर मोड़ पर खोजने लगी तुम्हें मेरी आँखें,
ऐसा हुआ मिलन कि, हर ख्यालों में आ गई।
०७-०६-२०१५

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अरूणोदय के समय में,सुनहरे तीर बरसाते हुअे।
किरण में अन्तर्निहित हुए,विखरने लगा धरातल पे।
जाग गई सभी वनस्पतियां ,जाग गई सब मानवता,
चहचहाने लगी चिड़ियाँ ,लिए भाव कोमल विखेरते।
२४-०२-२०१५

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आपकी यात्रा मगलमय हो।
हमेशा आप कल्याणमय हो
बढते रहे मंजिल की तरफ,
जीवन आपका सुखमय हो।।

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मुझे तुम्हारी याद क्यों~ सताया करती है।
बिच-बिच में क्यों~~~ तड़पाया करती है।।
आना है तो आ जाओ मेरे दिल के अन्दर,
बातें करके हमेशा क्यों फसाया करती हैं।।

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इस धरती पर बोझ बढा है,
माँ धरती का कष्ट बढा है,
आओ मिलकर करें पूजा,
कभी न इससे कद घटा है।

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आपके लेखनी में है दम,
चार चाँद लगाते हरदम,
शब्दों को चुन-चुन करके,
दिखा देते हैं अपना दम।

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आपकी नज़रो ने समझा प्यार के काबिल मुझे,
मिल गयी मंज़िल——- आपकी नजरों से मुझे,
इसलिए आपको —आभार व्यक्त करता हूँ मैं,
आपकी धड़कन की आवाज़— कबूल है मुझे।

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काले-काले बालों को लहराने से, नभ में काली घटा छाने लगी।
ओठों पर मुस्कुराहट लाने से~~चेहरे पर हरियाली छाने लगी।
ये जुल्फे, ये आँखें, इस मधुर-मधुर मुस्कुराहट के संमागम से,
ऐसा कर गई, मुझ पर जादू, कि ख्वाबों-ख्यालों में आने लगी।

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अंधेरी रातों में, लौह की ज्योति जलाये हुए हैं
आपके अगमन में, पलकों को उठाये हुए हैं
मेरे इन्तजार की घड़िया, कब समाप्त होगी
आने की चाह में पलक पावड़े बिछाये हुए हैं।।
१९-०८-२०१५

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बादलों का, जब आपस में, होता है समागम।
घटा-घनघोर बीच आपस में होते हैं हृदयंगम।
टपकाते हैं खुशी के अश्रुपात हमारे आँगन मे,
सर्वत्र खुशियाँ बिखेरने में भूल जाते सारागम।।
२०-०८-२०१५

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प्यार करने वाले बड़े ही बदनसीब होते हैं।
ऐसे ही बीच राहों में भटकते छुट जाते हैं।
खुदा के सिवाय उनका कोई सहारा नहीं है,
इस दुनिया में आकर वो पागल कहलाते हैं।
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आपकी याद में~~ खोए हुए हैं।
अपने बेड पर~~~ सोये हुए हैं।
आपसे बातें~~~~~ करते हुए,
अपने सपनों को~संजोये हुए हैं।
३०-०७-२०१५

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जागो हमारे शिक्षक भाइयों।
आँखें खोलो हमारे भाइयों।
भविष्य अब खराब हो रहा है,
कोर्ट का द्वार देखिए भाइयों।
(शिक्षक हित में जारी)

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हर किसी को साथ में लेकर चलना काम मेरा यही है।
पीछे मुड़कर देखना नहीं ——जज्बात मेरा यही है।
सबको साथ लेकर चलना—- हर समय प्रयासरत हूँ,
हर परिस्थितियों में सहयोग करना, काम मेरा यही है।

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भोग लिप्सा आज भी~~~ हर जगह चल रही है।
नर की भावना असहाय~~हर जगह बह रही है।
अब तक सुशीतल हो सका न~~~~पुरा संसार,
अमृत की बारिश धरा पर हर जगह पड़ रही है।
०७-०८-२०१५

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खत्म नहीं हुआ अभी मोहब्बत का फंसाना।
अभी संयोग पुरा हुआ, वियोग का हैं आना।
०९-०८-२०१५

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प्रेम में रंजीत कर जीवन प्रेमयुक्त कर दो।
प्रेम भरी दुनिया में मुझे~~ प्रेमी बना दो।
स्नेह के बगीचे में~~~~~~ फूल लगाकर
सभी के अन्दर~ प्रेम रूपी फूल खिला दो।
२५-०८-२०१५

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शिक्षकों का जहाँ हुआ- अपमान।
पनपने लगे चोर, डाकू, बेईमान ।
यहाँ बिहार का विकास कैसे होगा,
जब शिक्षक खोने लगे– सम्मान।।

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हद से ज्यादा खुश हैं—- क्या बात है।
चेहरे पर भरपूर मुस्कान, लाजवाब है।
किस कारण– खिलखिला उठा चेहरा,
मुझे भी जानने की, हृदय से आस है।।
१४-१०-२०१५

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आँख में भरी है~~~~ मस्ती ।
ओठ पर हँसीं है~~छलकती ।
कहाँ से खुशबू की खुशबूदार,
खुशबू है~~~~~~ महकती।।

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ये काले-काले——- बालों के बीच में,
कोई कली———— खिल चुकी है।
हँसते— मुस्कुराते— चेहरे के बीच में,
ये अधर गुलाब की पंखुड़ि बन चुकी है।
१४-१०-२०१५

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इसी तरह हमेशा चेहरे पर रहे~~~ मुस्कान।
जीवन के सफर में छुते रहे~~~~ आसमान ।
कभी भी आपके जीवन में आयें न रुसवाईयां,
दामपत्य जीवन में पुरा होते रहे~~~ अरमान।
०८-१०-२०१५

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जिन्दगी के राह में,अनेकों मोड़ मिलते हैं।
सब पर लोग चलकर~ गुजरना चाहतें हैं।
हर समय बिताने के बाद~~ आखिरी में,
एक ही जगह पर जाकर लोग मिलते हैं।।
०६-१०-२०१५

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कहाँ छोड़कर~वो चली।
खिली मिली थी वो कली।
हँसीं देकर मेरे हृदय में,
किस पथ पर~ वो चली।।
०५-१०-२०१५

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भाई बहन का प्यार~ आज है राखी का त्यौहार।
आज भाई अपने बहन को खूब सारा देता प्यार।
बहन ने भाई की कलाई में~ धागा को बाधकर,
एक दूसरे के रक्षा के लिये करते हैं~ व्यवहार।।
२९-०८-२०१५

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नहीं मतलब है हमें किसी सरकार से।
अगर मतलब है तो सिर्फ़ अपने अधिकार से।
कोशिश करते रहेंगे हमेशा मरते दम तक,
लड़ना ही मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है।
०५-११-२०१५

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सौन्दर्य को देखकर किसी के हृदय पर भाव उमड़ी होगी।
हृदय के रास्ते मानसिक पटल से कोई शब्द गुजरी होगी।
किसी रचनाकार के निरन्तर प्रयास करने के— पश्चात् ही,
शब्दों के जरिए वाक्य बनाने के लिए चाहत निकली होगी।
०१-१२-२०१५

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तुम्हारी आहट को सुनकर—- गुनगुनाया।
तुम्हारी आवाज़ को परखकर- मुस्कुराया।
हर अदाओं को रखने की कोशिश किया मैं,
लेकिन हो बहुत दूर यह सुनकर मुरझाया।
०१-१२-२०१५

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मैं दुखी हूँ इस—– जहां से।
करता है मन चल दूँ यहाँ से।
इस दुनिया में नहीं है- रहना,
फंस गया आ के मैं कहाँ से।

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धुप न रही—– छांव न रहा।
गम न रही—– याद न रहा।
वो चलती रही, मै चलता रहा।
वो आती रही—मैं जाता रहा।
२४-१०-२०१५

••••••••••••••••

कहाँ छोड़कर~~~वो चली।
खिली मिली थी~~ वो कली।
हँसीं देकर मेरे~~~हृदय में,
किस पथ पर~~~ वो चली।।
०५-१०-२०१५

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तेरा यहा पर ठौर ठिकाना— तू कुछ भी कर सकता है।
भले ही इसके लिए- तू -भ्रष्ट- पथ पर चल सकता है।
नीचता पर उतर सकता है स्वार्थ-सिद्ध-पूर्ण करने के लिए,
मिट्टी-पलीद हो जाये भली लेकिन पीछे नही हट सकता है।
२२-११-२०१५

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जब बन-सवँर-कर निकलती थी वो।
मेरे दिल -जिगर पर गुजरती थी वो।
मेरे अंदर ऐसा भाव जागृत कर गई,
हरदम हृदय-तल पर उमड़ती थी वो।
२३-११-२०१५

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सौन्दर्य को देखकर किसी के हृदय पर भाव उमड़ी होगी।
हृदय के रास्ते मानसिक पटल से कोई शब्द- गुजरी होगी।
किसी रचनाकार के निरन्तर प्रयास करने के—- पश्चात् ही,
शब्दों के जरिए वाक्य बनाने के लिए चाहत निकली होगी।
०१-१२-२०१५

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तुम्हारी आहट को सुनकर गुनगुनाया।
तुम्हारी आवाज़ को परखकर मुस्कुराया।
हर अदाओं को रखने की कोशिश किया मैं,
लेकिन हो बहुत दूर यह सुनकर मुरझाया।
०१-१२-२०१५

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तुम कहाँ गई थी माँ~~मैं कबसे भूखी।
दाना चुग कर लाई है~मैं कबसे दुखी ।
मुझे भी चलना फिरना अब सिखला दो,
गगन में पंख फैलाना है, यह मेरी रुचि।
१३-११-२०१५

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रात के अंधेरे में तेरी– परछाइयाँ दिखती हैं।
यादों के दायरे में तेरी अच्छाइयाँ दिखती हैं।
मेरे ख्वाबों को हकीकत में- कर दो तब्दील,
यादों में हर वक्त तेरी अंगड़ाइयाँ दिखती हैं।
१७-११-२०१५

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एक झलक दिखला दो कहाँ खो गई हो।
रोज ख्यालों में आती हो कहाँ सो गई हो।
तुम्हारे इन्तजार में पलक पावड़े बिछाए है,
महसूस होता है जैसे कोई बात हो गई हो।
१८-११-२०१५

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इस दुनिया में बहुत दूर हो तुम।
मेरे लिए बहुत नजदीक हो तुम।
यादों में हर वक्त होती मुलाकातें,
हकीकत में बहुत करीब हो तुम।
१८-११-२०१५

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ज्ञान की इस दुनिया में किताबों का महल हो।
हर वक्त वहाँ पर अच्छे ज्ञानियों का टहल हो।
शिक्षा प्राप्त करने का एक बन जाय गुरुकुल,
भविष्य सुंदर बनाने वाले बच्चों का पहल हो।।
१८-११-२०१५

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मतलब नहीं हमको किसी सरकार से।
हमको मतलब है बस अपने अधिकार से।
कोशिश करेंगे हम मरते दम तक सदा,
जन्म सिद्ध अधिकार को छीनेंगे सरकार से

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तुम्हारी आहट को सुनकर— गुनगुनाया।
तुम्हारी आवाज़ को परखकर मुस्कुराया।
हर अदाओं को रखने की कोशिश किया मैं,
लेकिन हो बहुत दूर यह सुनकर मुरझाया।
०१-१२-२०१५

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यादों में इस तरह मुझे सुलगता छोड़ गया।
तनहाईयां देकर- मुझे उबलता छोड़ गया।
क्या करें ख्यालों में– परछाइयाँ दिखती है,
दिल-जिगर पर प्यार, उफनता छोड़ गया।।
१२-१२-२०१५

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सर्दीयों के सुबह में—-कुंहरा छाने लगता है।
धुन्ध बनकर, धरातल पर—- आने लगता है।
घास के शिर्ष पर चमकता, मोतियों की तरह,
सूर्य की रोशनी आते ही पुन: जाने लगता है।।
१५-१२-२०१५

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गगन में चाँद- तारें हैं।
रोशनी में चमन सारे हैं।
खुशियों का अम्बार है,
यहां सभी प्राणि न्यारे हैं ।।
१५-१२-२०१५

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यही होता है आज के प्यार में।
यही होता है प्यार के खुमार में।
सोच-सोच कर लोग दर्द पीते हैं,
प्यार के अन्त-अन्जाम को संसार में।।
१५-१२-२०१५

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नदी की धार बलखाती हुई।
बीच में नाव डगमगाती हुई।
किनारों से करेगी मुलाकात,
लहरों के साथ लहराती हुई।।
१६-१२- 2०१५

रमेश कुमार सिंह 'रुद्र'

जीवन वृत्त-: रमेश कुमार सिंह "रुद्र"  ✏पिता- श्री ज्ञानी सिंह, माता - श्रीमती सुघरा देवी।     पत्नि- पूनम देवी, पुत्र-पलक यादव एवं ईशान सिंह ✏वंश- यदुवंशी ✏जन्मतिथि- फरवरी 1985 ✏मुख्य पेशा - माध्यमिक शिक्षक ( हाईस्कूल बिहार सरकार वर्तमान में कार्यरत सर्वोदय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सरैया चेनारी सासाराम रोहतास-821108) ✏शिक्षा- एम. ए. अर्थशास्त्र एवं हिन्दी, बी. एड. ✏ साहित्य सेवा- साहित्य लेखन के लिए प्रेरित करना।      सह सम्पादक "साहित्य धरोहर" अवध मगध साहित्य मंच (हिन्दी) राष्ट्रीय सचिव - राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन मध्यप्रदेश,      प्रदेश प्रभारी(बिहार) - साहित्य सरोज पत्रिका एवं भारत भर के विभिन्न पत्रिकाओं, साहित्यक संस्थाओं में सदस्यता प्राप्त। प्रधानमंत्री - बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन इकाई सासाराम रोहतास ✏समाज सेवा - अध्यक्ष, शिक्षक न्याय मोर्चा संघ इकाई प्रखंड चेनारी जिला रोहतास सासाराम बिहार ✏गृहपता- ग्राम-कान्हपुर,पोस्ट- कर्मनाशा, थाना -दुर्गावती,जनपद-कैमूर पिन कोड-821105 ✏राज्य- बिहार ✏मोबाइल - 9572289410 /9955999098 ✏ मेल आई- [email protected]                  [email protected] ✏लेखन मुख्य विधा- छन्दमुक्त एवं छन्दमय काव्य,नई कविता, हाइकु, गद्य लेखन। ✏प्रकाशित रचनाएँ- देशभर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में एवं  साझा संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित। लगभग 600 रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं तथा 50 साझा संग्रहों एवं तमाम साहित्यिक वेब पर रचनाये प्रकाशित। ✏साहित्य में पहला कदम- वैसे 2002 से ही, पूर्णरूप से दिसम्बर 2014 से। ✏ प्राप्त सम्मान विवरण -: भारत के विभिन्न साहित्यिक / सामाजिक संस्थाओं से  125 सम्मान/पुरस्कार प्राप्त। ✏ रूचि -- पढाने केसाथ- साथ लेखन क्षेत्र में भी है।जो बातें मेरे हृदय से गुजर कर मानसिक पटल से होते हुए पन्नों पर आकर ठहर जाती है। बस यही है मेरी लेखनी।कविता,कहानी,हिन्दी गद्य लेखन इत्यादि। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ आदरणीय मित्र मेरे अन्य वेबसाईट एवं लिंक--- www.rameshpoonam.wordpress.com http://yadgarpal.blogspot.in http://akankshaye.blogspot.in http://gadypadysangam.blogspot.in http://shabdanagari.in/Website/nawaunkur/Index https://jayvijay.co/author/rameshkumarsing ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ आपका सुझाव ,सलाह मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत है ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~