कविता

चमचागीरी

व्यंगम व्यंग
कविता का कोई मोल नहीं/
चमचागीरी सा झोल नहीं/
अक्कड़ बक्कड़ लालबुझक्कड़
हुए हैं मंचासीन/
तितऊ लौकी नीम पे चढ़कर
हुई आज रंगीन/

लंबी लंबी लौकी देख
नीम आज गमगीन/
साहित्यकार रस चूस
खाय रहे चाऊमीन /
बिना पेदी के लोटा जैसा
नहीं कोई आधार /
सुबह शाम करते रहते
मंचासीन प्रचार /
मंच करें गुणगान उन्हें कहें श्रीमान/
लंबे चौड़े कमेंट से कर देते है काम/
समय नहीं उनको कभी करें प्रतीक्षा राज
राज सदा ही राज है उन्हे मुबारक साज़/
साज़ -बाज करते रहे रात्रि मृदंगी बाज /
परवाने कितने गये चील करत है नाज़/
रवि छूने की चाह मे जले संपाती पंख/
बैठ के सागर तीर पर मार रहा है डॅंक/
कुछ मे तो बैठा अहम ऐंठ के सीना तान/
मूरख मनकी व्याधि ने तन किया श्मसान /
हे हरि रक्षक आप हो शांति करो प्रदान /
नरक लोक के द्वार पर दो इनको सम्मान/
जब तक जीते ये रहे, खुद मे जीते ये रहे/
हार कभी देखा नहीआप उन्हें भी हार दो /
—————————————————————
राजकिशोर मिश्र ‘राज’
०८/११/२०१५

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि