व्यंगम व्यंग
कविता का कोई मोल नहीं/
चमचागीरी सा झोल नहीं/
अक्कड़ बक्कड़ लालबुझक्कड़
हुए हैं मंचासीन/
तितऊ लौकी नीम पे चढ़कर
हुई आज रंगीन/
लंबी लंबी लौकी देख
नीम आज गमगीन/
साहित्यकार रस चूस
खाय रहे चाऊमीन /
बिना पेदी के लोटा जैसा
नहीं कोई आधार /
सुबह शाम करते रहते
मंचासीन प्रचार /
मंच करें गुणगान उन्हें कहें श्रीमान/
लंबे चौड़े कमेंट से कर देते है काम/
समय नहीं उनको कभी करें प्रतीक्षा राज
राज सदा ही राज है उन्हे मुबारक साज़/
साज़ -बाज करते रहे रात्रि मृदंगी बाज /
परवाने कितने गये चील करत है नाज़/
रवि छूने की चाह मे जले संपाती पंख/
बैठ के सागर तीर पर मार रहा है डॅंक/
कुछ मे तो बैठा अहम ऐंठ के सीना तान/
मूरख मनकी व्याधि ने तन किया श्मसान /
हे हरि रक्षक आप हो शांति करो प्रदान /
नरक लोक के द्वार पर दो इनको सम्मान/
जब तक जीते ये रहे, खुद मे जीते ये रहे/
हार कभी देखा नहीआप उन्हें भी हार दो /
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राजकिशोर मिश्र ‘राज’
०८/११/२०१५