“पहचान”
लौटी गीता अपने घर, है कितना सुन्दर अवसर
उठों आज लौटा आये, जिसका सम्मान उसीके घर ||
लौटाने की होड़ लगी, कोई बचपन भी लौटाएगा
लौटा दो माँ की ममता, जो टंगी हुयी है नभपर ||
मांग रही है माटी हमसे, अपनी महक पुरानी
चलों आज लौटा आयें, हरियाली उसके पथपर ||
पूछ रहे हैं गुरू हमारे किधर गया मेरा ज्ञान
उनकी पोथी उनकों अर्पण, लौटाएं हम मिलकर ||
देता सम्मान शरण उनकों, जो करते हैं सम्मान
छा जाती आँखों में करुणा, सुर्ख लवों पर आकर ||
खेल-खेल में बच्चों ने, तोड़ दिया गुलदस्ता एक
कैसी लगती हूँ बतलाओं, कहती तस्वीर बिखरकर ||
नीला पीला लाल हरा हर रंगों की पहचान अलग
सप्तरंगी वह इन्द्रधनुष,उग आया खुद अंबर पर ||
महातम मिश्र