कुंडलिया छंद
गाँधी वाले राष्ट्र में, जलती नफरत आग।
नेता खंडित कर रहे, आपस का अनुराग।
आपस का अनुराग, सियासत को जो अखरे।
ऐसी चलती चाल, भीत सहिष्णुता बिखरे।
कह ‘पूतू’ कविराय, चली यह कैसी आँधी।
बुझा प्रेम का दीप, सोचते होंगे गाँधी॥
— पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’
बहुत खूब !