दिल में दीप जलाएँ
इस दिवाली दिल में भी
चलो एक दीप जलाएँ,
मन का अंधकार मिटाकर
खुद को रोशनी में लाएँ।
सारी दुनिया का हमने
मिटा दिया सभी तिमिर,
लेकिन अपने ही दिल से
हम तो मिटा न सके पीर।
कैसे जलेगा दीप दिल में
गम का सागर भरा है,
घृणा-द्वेष का तूफां भी
दिल में कहीं छुपा है।
दिवाली में साफ करते हैं
अपने घर का आवरण,
लेकिन नहीं कर पाते हैं
हम अपना ही मन पावन।
गम-द्वेष मिटाकर हम
दिल को साफ बनाएँ,
दिल को नहीं इस बार
दिल में दीप जलाएँ।
-दीपिका कुमारी दीप्ति