कवितापद्य साहित्य

चलते रहना है …

जिन्दगी मिली है तो, अंतिम श्वांस तक जीना है

रास्ता चाहे जैसा हो, उस पर चलते रहना है |

चाहे हिमालय की गगनभेदी, तीखी चोटियाँ हों

या महा सागर की, अनजान अतल गहराई हों,

बिना रुके निरन्तर, उसपर आगे बढ़ते जाना है

रास्ता चाहे जैसा हो, उस पर चलते रहना है |

 

कभी कंकड़, कभी काँटे, पग में चुभे चाहे शूल

डरकर नहीं रुकना कभी, करना नहीं यह भूल,

रबने दिया है यह जीवन, भरपूर इसको है जीना 

होगा परमात्मा से बेवफाई, उससे बिमुख होना,

बुलंद हिम्मत से जीवन को, बुलंदी पर पहुंचाना है

रास्ता चाहे जैसा हो, उस पर चलते रहना है |

 

सुख है तो दुःख है, जैसे हैं दिवस रजनी

देह है वाद्ययंत्र, काल बजाता, रोग-रागिनी,

बजते रहना है जैसे बजाय, सुर-ताल के रचयिता

हँसना रोना हर चोटपर, चाहता यही जग-रचयिता,

सुख-दुःख, रोग-शोक के, तार से जीवन जुडा है

रास्ता चाहे जैसा हो, उस पर चलते रहना है |

 

© कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !