क्या खूब बनाईं एकता
दिया चुपचाप बैठीं थीं,
अपने जगह पर।
सोच रही थी आज दिवाली है,
कैसे हम तम को हटाएँ?
कैसे हम ज्योति जलाएँ?
यही अपने मन में आस लिये,
अन्तर्निहित विश्वास लिए,
अपने जगह पर।
स्नेह का सहारा लिए,
आई कहीं से बाती,
दिया को बनाने के लिए अपना साथी।
तम को मिटाने के लिए,
करने लगी आपस में बातें।
तब-तक उधर तेल,
सहृदयता का भाव लिये,
अन्तस में सुनहरा आस लिए।
बेसब्री से ढुढ रहा था,
दिया और बाती को,
तमस को मिटाने के लिए
हुआ तीनों का सम्मिलन,
किये अपना सम्मिश्रण,
एकता बनाए दूसरों के लिए।
दिया के गोद में बैठकर,
तेल और बाती,
कर गये अपने को समर्पित,
धरा पर प्रकाश फैलाने के लिए।
क्या खूब बनाईं एकता,
लोगों का स्नेह पाने के लिए,
किये अपने स्नेह को कुर्बान।
हो गये जलकर राख-
तेल और बाती,
हटाकर,अन्दर से बुराई,
दे गये सबको अच्छाई।।
@रमेश कुमार सिंह /१०-११-२०१५
९५७२२८९४१०