उपन्यास अंश

अधूरी कहानी : अध्याय-40 : एक्सीटेन्ट

रेनुका ने वह लेटर अपने पापा की खुशी के समीर को भेजा था पर रेनुका समीर को दिलोज़ान से प्यार करती थी रेनुका की शादी करन नाम के लड़के से तय कर दी गई करन  एक अमीर खानदान से है रेनुका के घर में सब लोग बहुत खुश थे पर रेनुका जब देखो तब समीर की यादों में खोई रहती थी रेनुका के पापा ने सोचा कि कुछ दिनों बाद रेनुका ये सब भूल जाएगी फिर सब अपने आप ठीक हो जाएगा पर ऐसा नहीं हुआ।

मानो समीर की यादों के सहारे रेनुका की सांसे चलतीं हों धीरे-धीरे समय बीतता गया रेनुका की सगाई भी हो गयी पर रेनुका में कोई बदलाव नहीं आया ये देखकर रेनुका के पापा को बहुत चिंता होने लगी रेनुका दिन भर अपने कमरे में ही रहती थी किसी से बात नहीं करती थी, हमेशा चुप रहती थी और वह खाना भी बस इतना खाती कि बस जिंदा रह सके ।

एक दिन रेनुका के पापा ने करन को अपने घर बुलाया और रेनुका को करन के साथ कहीं दूर घूमने जाने की बात की रेनुका के पापा ने सोचा कि दूसरे माहौल में रहने से रेनुका में कुछ सुधार आयेगा रेनुका का फेवरेट प्लेस श्रीनगर था इसलिए उन लोगों ने श्रीनगर की दो टिकट बुक की और एक अच्छे फाइव स्टार होटल में रूम बुक कर दिया रेनुका ने पहले तो मना किया पर बाद में घर वालों के ज्यादा कहने पर वह करन के साथ श्रीनगर चली गई।

करन रेनुका का बहुत ध्यान रखता था उसे नयी-नयी जगह घुमाने ले जाता था करन व रेनुका एक-दूसरे को अच्छी तरह से जान चुके थे तथा रेनुका समीर को भी भूलने लगी थी ।

एक सुबह रेनुका जैसे ही रूम से बाहर निकली तो उसने रिसेप्सन में एक आदमी को देखा और जोर से चिल्लायी ‘समीर’ और वह दौड़कर वहां आयी पर तब तक वह आदमी वहां से जा चुका था करन दौड़कर रेनुका के पास आया तब रेनुका बोली करन मैंने अभी-अभी समीर को यहां देखा तब करन बोला यहां समीर कैसे आ सकता है वह कोई और आदमी होगा जिसे तुम समीर समझ बैठी पर रेनुका ये बात मानने को तैयार  नहीं थी इसलिए रेनुका ने रिसेप्सन पर पता किया तो पता चला कि वह समीर मल्होत्रा ही था और किसी काम से अपने पापा के साथ यहां आया था और अभी चैक आउट करके निकल चुका है।

तब रेनुका करन से बोली कि अब मुझे यहां एक पल भी नहीं रुकना है तब करन ने पैकिंग की और चैक आउट करके वहां से निकल गये इतने दिनों में करन को ये तो पता चल गया गया था कि रेनुका समीर के बिना नहीं रह सकती इसलिए करन ने रेनुका के पापा को बहुत समझाया और अपनी सगाई तोड़कर रेनुका और समीर की शादी के लिये मना लिया फिर रेनुका के घर वाले समीर के घर वालों से मिलने जयपुर पहुँच गये रेनुका व उसके घर वाले उसके मामा के यहां आकर रुके पर रेनुका समीर से मिलने को बेताव थी इसलिए वह कार निकालकर समीर के घर की तरफ जाने लगी रेनुका की गाड़ी की स्पीड काफी बढ़ गयी थी तथी कही से अचानक एक बच्चा गाड़ी के सामने आया बच्चे को बचाने के चक्कर में रेनुका की गाड़ी खांई में जा गिरी जहां से रेनुका की लाश औक नहीं मिली यह सदमा रेनुका के पापा सहन नहीं कर पाये और कुछ दिनों में वह भी चल वसे उसके बाद से उसका बदनसीव भाई मैं और मेरी माँ यही रहते है।

यह सुनकर समीर जोर-जोर से रोने लगा और बोला कि मैं ही वह बदनसीव समीर हूँ इतना कुछ हो गया और रेनुका ने मुझे बताया तक नहीं मैं तो यही सोच रहा था कि उसकी शादी हो चुकी है इसलिए मैंने कभी उसे ढूंढने की कोशिश नहीं की पर बो मुझे इतनी बड़ी सजा देकर चली गई।

दयाल कुशवाह

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