कविता

याद आ गयी..

यें क्या देख रही मैं
सब अपने ही
बन गए है दुश्मन
रोज खुन खराबा करते
एक दुसरे को दोषी ठहराते
नफरत फैल गई है
सारें जन-जन में
प्यार का तों नामों निशान नही
यें सब देख घबरा गई मैं
तभी तु चुपके से याद आ गई|
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४