गीत/नवगीत

गीत : टीपू

टीपू सुल्तान जयंती विवाद पर मेरी नई कविता–

आज किसी टीपू के चरणों में देखो सरकार पड़ी
फिर से हम पर देखो झूठे इतिहासों की मार पड़ी

कब तक हिन्दू गौरव पर यूं हमले होते जाएँगे
रक्त सने इतिहास हमारे मुख पर पोते जायेंगे

कब तक घाव कुरेदे जाएंगे दुश्मन की गोली के
कब तक महिमा मंडन होंगे अफगानों की टोली के

कब तक यूँ गाया जायेगा तुर्क मुगलिया शानों को
कब तक नायक माना जायेगा टीपू सुल्तानों को

कब तक दौर गुलामी वाले, पुनः खरोंचे जाएँगे
कब तक केसरिया झंडे के धागे नोचे जायेंगे

क्रूर और निर्दयी राज को सहनशील दिखलाते हो
इस्लामी तानाशाही को भी स्वर्णकाल बतलाते हो

कर्नाटक की “गौरव” गाथा इक टीपू की दास नहीं
लगता सिद्धरमैया ने है कभी पढ़ा इतिहास नहीं

याद रहा मैसूर मगर क्यों विजयनगर को छोड़ दिया
हिन्दू शासक कृष्ण देव से नाता अपना तोड़ दिया

कृष्णदेव संस्कृति के पोषक, कला-धर्म के राही थे
उनके पुरखे हरिहर बुक्का सच्चे वीर सिपाही थे

कर्नाटक का वीर वंश जेहादों से टकराया था
इस्लामी हमलों के आगे सिर को नहीं झुकाया था

वोटों की खातिर, सुल्तानों की गोदी में झूल गए
और विदेशी चालों में अपने पुरखे ही भूल गए

ह्रदय तुम्हारे निज गौरव का पुष्प कदाचित खिला नहीं
और जयंती की खातिर कोई भी ढंग का मिला नहीं

टीपू कर्नाटक का नायक? कभी नहीं हो सकता है
उसके पाप नहीं कोई भी गंगाजल धो सकता है

अंग्रेजों से लड़ा, मगर वो फ्रांसिसियों का मित्र रहा
दोनों ही थे परम लुटेरे, कैसे स्वच्छ चरित्र रहा

इस्लामी शासन के जिसने स्वर्णिम स्वप्न संजोये थे
और पांच सौ ब्राह्मणों के सर जिसने कटवाए थे

श्वेत पृष्ठ पर कालिख का उत्कर्ष नहीं हो सकता है
ये टीपू सुल्तान कभी आदर्श नहीं हो सकता है

— गौरव चौहान

One thought on “गीत : टीपू

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार गीत !

Comments are closed.