गीतिका/ग़ज़ल

ठिठुरती गीतिका

सबको मुबारक सुबह का उजाला।
ठिठुरन भरा दिन यहाँ पर निकाला ।

अभी सांझ की सरसराती हवा है ,
हमारे यहाँ का चलन है निराला ।।

घिरा है यहाँ पर अँधेरे में सूरज,
रजाई से मुँह तक न बाहर निकाला ।।

बरसता रहा सारे दिन आज पानी
बच्चों की मस्ती का निकला दिवाला ।।

हरी घास पर सूखे पत्तों का डेरा,
न जाने सुबह कल भी होगा उजाला ।।

_____ लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

One thought on “ठिठुरती गीतिका

  • प्रदीप कुमार तिवारी

    sunder, bahot hi sunder

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